Wednesday 2 April 2014

विरह ज्वर नाशक पति स्तवन - Virah Jwar Nashak Pati Stawan / Stavan

विरह ज्वर नाशक पति स्तवन - Virah Jwar Nashak Pati Stawan / Stavan




बहुत से लोगों कि समस्याओं को देखकर और आधुनिक समाज के आकलन के पश्चात् मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि आज के हमारे समाज में १०० में से ४० युग्म ऐसे हैं जो किसी न किसी प्रकार से वैचारिक मतभेद या किसी तीसरे पक्ष कि वजह से अपने हस्ते खेलते पारिवारिक जीवन में बहुत सी विषमताओं का शिकार होकर रह गए हैं - जिसकी वजह से हर पल कि घुटन और अनिश्चितता कि वजह से अपना शारीरिक और मानसिक संतुलन खोते चले जा रहे हैं और परिणाम ये होता है कि इन सब वजहों से पारिवारिक - सामाजिक और आर्थिक स्तर का ह्रास होता जा रहा है हालाँकि कुछ समय के बाद लोगों को अहसास होता है कि उन्होंने कितना गलत कदम उठाया था - लेकिन जब तक समझ में आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है या फिर सब कुछ तहस - नहस हो चूका होता है - !


इसलिए सबसे पहले तो मेरी सलाह यही है आप सब लोगों को कि छोटी - मोटी वैचारिक भिन्नताओं को अपने रिश्ते पर इतना भरी न पड़ने दें कि वह आपके रिश्ते को ही खा जाये - और एक बात हमेशा अपने दिमाग में रखें कि अवैध रिश्तों कि उम्र और विश्वसनीयता बहुत कम होती है - चाहे स्त्री हो या पुरुष यदि वह अपने साथी को भूलकर आज आपकी तरफ आकर्षित हुआ है तो इस बात की क्या गारंटी है कि वह कल आपको छोडकर किसी और कि तरफ नहीं भागेगा -?


लेकिन इसके बावजूद भी यदि आप हालात का शिकार हो ही चुके / चुकी हैं तो आपके लिए एक तरीका है जिसे अपने जीवन में शामिल करके आप अपने खोये हुए सौभाग्य / प्रेम को वापस पा सकते हैं - !


पति-स्तवनम् - Pati Stawanam

नमः कान्ताय सद्-भर्त्रे, शिरश्छत्र-स्वरुपिणे ।
नमो यावत् सौख्यदाय, सर्व-देव-मयाय च ।।
नमो ब्रह्म-स्वरुपाय, सती-सत्योद्-भवाय च ।
नमस्याय प्रपूज्याय, हृदाधाराय ते नमः ।।
सती-प्राण-स्वरुपाय, सौभाग्य-श्री-प्रदाय च ।
पत्नीनां परनानन्द-स्वरुपिणे च ते नमः ।।
पतिर्ब्रह्मा पतिर्विष्णुः, पतिरेव महेश्वरः ।
पतिर्वंश-धरो देवो, ब्रह्मात्मने च ते नमः ।।
क्षमस्व भगवन् ! दोषान्, ज्ञानाज्ञान-विधापितान्।
पत्नी-बन्धो, दया-सिन्धो ! दासी-दोषान् क्षमस्व वै ।।


।। फल-श्रुति ।।

स्तोत्रमिदं महालक्ष्मि ! सर्वेप्सित-फल-प्रदम् ।
पतिव्रतानां सर्वासां, स्तोत्रमेतच्छुभावहम् ।।
नरो नारी श्रृणुयाच्चेल्लभते सर्व-वाञ्छितम् ।
अपुत्रा लभते पुत्रं, निर्धना लभते ध्रुवम् ।।
रोगिणी रोग-मुक्ता स्यात्, पति-हीना पतिं लभेत् ।
पतिव्रता पतिं स्तुत्वा, तीर्थ-स्नान-फलं लभेत् ।।






विधिः-

अ. विवाहित स्त्रियों के लिए जो अपने पति के साथ कभी मतभेद नहीं चाहती हैं एवं पति को परमेश्वर तुल्य मानती हैं :-

१. प्रातः काल उठाकर अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करने के उपरांत धुले हुए वस्त्र धारण करके भक्ति पूर्वक पति को सुगन्धित जल से स्नान करवाकर स्वच्छ वस्त्र पहनाएं - तत्पश्चात आसन पर बैठकर उनके मस्तक पर चन्दन का तिलक लगाएं - गले में पुष्प माला पहनाएं - धुप दीप अर्पित करें - भोजन करवाकर - उन्हें शिव स्वरुप मानकर इस स्तोत्र का पाठ करें -!

ब. उन स्त्रियों के लिए जो पति को प्राणवत प्रेम करती हैं लेकिन उनके पति या तो उन्हें प्रेम नहीं करते या फिर किसी अन्य स्त्री के संपर्क में आ गए हैं :-

१. प्रातः काल उठाकर अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करने के उपरांत धुले हुए वस्त्र धारण करके भक्ति पूर्वक पति के चित्र को सांकेतिक रूप से सुगन्धित जल से स्नान करवाकर स्वच्छ वस्त्र पहनाएं - तत्पश्चात आसन पर बैठकर उनके मस्तक पर चन्दन का तिलक लगाएं - गले में पुष्प माला पहनाएं - धुप दीप अर्पित करें - भोजन करवाकर - उन्हें शिव स्वरुप मानकर इस स्तोत्र का पाठ करें -!

स. कुवांरी कन्यायें जो मनोवांछित वर कि इच्छा रखती हैं :-

१. भगवान शिव को माता गौरी सहित उपरोक्त विधान से पूजा करने के बाद स्तोत्र का पाठ करें

ड. प्रेमी वर्ग कि लड़कियों के लिए :-

यदि आप किसी से प्रेम करती हैं किन्तु आपके माता - पिता या प्रेमी पक्ष के माता - पिता अथवा किसी अन्य व्यक्ति कि वजह से आपके सम्बन्धों में बाधा डाली जा रही है तो आप इस स्तोत्र के पाठ से उन सब बाधाओं को पार करके अपने मनोवांछित तक पहुँच सकती हैं -!






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