Wednesday 2 April 2014

विरह-ज्वर-विनाशकं ब्रह्म-शक्ति स्तोत्रम् - Virah - Jwar Vinashak Brahm Shakti Stotra


विरह-ज्वर-विनाशकं ब्रह्म-शक्ति स्तोत्रम् - Virah - Jwar Vinashak Brahm Shakti Stotra




।।श्रीशिवोवाच।।

ब्राह्मि ब्रह्म-स्वरूपे त्वं, मां प्रसीद सनातनि ।
परमात्म-स्वरूपे च, परमानन्द-रूपिणि ।।
ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे, मां प्रसीद भवार्णवे।
सर्व-मंगल-रूपे च, प्रसीद सर्व-मंगले ।।
विजये शिवदे देवि ! मां प्रसीद जय-प्रदे ।
वेद-वेदांग-रूपे च, वेद-मातः ! प्रसीद मे ।।
शोकघ्ने ज्ञान-रूपे च, प्रसीद भक्त वत्सले ।
सर्व-सम्पत्-प्रदे माये, प्रसीद जगदम्बिके ।।
लक्ष्मीर्नारायण-क्रोडे, स्रष्टुर्वक्षसि भारती ।
मम क्रोडे महा-माया, विष्णु-माये प्रसीद मे ।।
काल-रूपे कार्य-रूपे, प्रसीद दीन-वत्सले ।
कृष्णस्य राधिके भद्रे, प्रसीद कृष्ण पूजिते ।।
समस्त-कामिनीरूपे, कलांशेन प्रसीद मे ।
सर्व-सम्पत्-स्वरूपे त्वं, प्रसीद सम्पदां प्रदे ।।
यशस्विभिः पूजिते त्वं, प्रसीद यशसां निधेः ।
चराचर-स्वरूपे च, प्रसीद मम मा चिरम् ।।
मम योग-प्रदे देवि ! प्रसीद सिद्ध-योगिनि ।
सर्व-सिद्धि-स्वरूपे च, प्रसीद सिद्धि-दायिनि ।।
अधुना रक्ष मामीशे, प्रदग्धं विरहाग्निना ।
स्वात्म-दर्शन-पुण्येन, क्रीणीहि परमेश्वरि ।।


।।फल-श्रुति।।

एतत् पठेच्छृणुयाच्चन, वियोग-ज्वरो भवेत् ।
न भवेत् कामिनीभेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि ।।




इस स्तोत्र का पाठ करने अथवा सुनने वाले को कभी प्रियतमा वियोग-पीड़ा नहीं होती और जन्म-जन्मान्तर तक कामिनी / पत्नी -भेद नहीं होता।

इस स्तोत्र का पाठ करने से निम्न लाभ होते हैं :-


  1. पारिवारिक कलह की शांति
  2. रोग या अकाल-मृत्यु भय का शमन 
  3. प्रणय सम्बन्धों में बाधाएँ आने पर


विधि :- 

अपनी इष्ट-देवता या भगवती गौरी का विविध उपचारों से पूजन करके उक्त स्तोत्र का पाठ करें
इच्छित फल कि प्राप्ति के लिये कातरता और समर्पण बहुत आवश्यक है।



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