Wednesday 12 March 2014

Mata Mahakali Sadhna - माता महाकाली साधना

Mata Mahakali Sadhna - माता महाकाली साधना

स्पष्टीकरण :- सभी सुधी पाठकों एवं साधकों से मेरा विनम्र निवेदन है कि यदि आपको मेरे इस लेखन में और प्रकरण में किसी प्रकार का कोई विरोधाभास नजर आता है और आपको लगता है कि मुझे इसे सही या संशोधित करना चाहिए तो सहर्ष आप सबके विचार आमंत्रित हैं -!


दस महाविद्या परिवार कि प्रथम एवं प्रधान मातृका शक्ति हैं माता महाकाली - साधकों एवं ग्रंथों में वर्णित रूप एवं अवतरण वर्णन के क्रम में साधक वर्ग जो नया है वह अक्सर भ्रमित हो जाता है - बहुत से लोग या साधक इस वजह से भ्रमित होते हैं क्योंकि जो भी लोग या व्यक्ति उनका मार्गदर्शन करने वाले होते हैं वे खुद ही सम्पूर्ण ज्ञान धारण किये हुए नहीं होते है -!


अस्तु जैसे कि दुर्गा शप्तशती में या अन्य स्थानों पर विवरण मिलता है कि जब दैत्यों के साथ युद्ध में माता दुर्गा को अपनी सहायक शक्तियों कि आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने उनका आवाहन किया और परिणाम स्वरुप माता काली भी वहाँ पधारीं और शत्रुओं के संहार में अपनी भूमिका निभायी - किन्तु वह रूप वास्तव में तब सिर्फ एक मातृका या योगिनी के रूप में उद्भूत हुआ था वह वास्तविक प्राकट्य नहीं था -!


यदि गहराई से देखा जाये और विस्तृत विश्लेषण किया जाये तो माता महाकाली आद्या शक्ति हैं और इस अखिल ब्रह्माण्ड में या जहाँ भी हम या कोई देव - दानव , परा या अपरा नहीं पहुँच सकता , जिसे शेष और शारदा भी वर्णित नहीं कर सकते जिनका कोई ओर - छोर नहीं है और जो हर कण में व्याप्त हैं जिनके इशारे मात्र से प्रलय आ सकती है जिनका ग्रास खुद काल भी बन जाता है और जिन्होंने इस समस्त सृष्टि के पालन का भार भी खुद ही वहन किया है - खुद त्रिदेव भी जिनका सुमिरन आठों याम करते हैं और जगत सञ्चालन में उन्ही कि आज्ञा का अनुसरण करते हैं -!


इस अखिल ब्रह्माण्ड में जब कुछ नहीं होता तब सिर्फ अँधेरा होता है - माता महाकाली का रूप भी काला है - जब कोई तत्व शेष नहीं होता तब भी माता महामाया महाकाली विद्यमान होती हैं और जब यह श्रृष्टि चल रही होती है तब अपने विभिन्न रूपों में भक्तों का कल्याण करने के लिए विद्यमान होती हैं -!


यदि रूप के आधार पर विवेचन किया जाये तो :-


१. भगवती आद्या महाकाली दस भुजाओं से युक्त हैं :-


( इस चराचर जगत में दस दिशाएं मानी गयीं है और दसों दिशाएं उनकी पहुँच से बाहर नहीं हैं अर्थात अपने शरणागत या भक्त की रक्षा के लिए वे हमेशा तत्पर हैं दिशा कोई भी हो - स्थान कोई भी हो )


२. भगवती महाकाली कि जीभ बाहर निकली हुयी है :-


( यदि शरणागत अपने आपको माता महाकाली कि शरण में सौंप देता देता है तो माता महाकाली उसके सारे दोष और अपराध बिना किसी भेदभाव के भक्षण कर जाती हैं वह नीच से नीच और पवित्र सभी के कर्मों का प्रतिफल देने वाली और उनका नाश करने वाली ममता मयी माता हैं )


विशेष :- हालाँकि कुछ ग्रंथों में यह भी वर्णित है कि माता महाकाली जब शत्रु दमन एम् व्यस्त थीं तो उस ससमय वे इतने क्रोध में आ गयीं कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब शत्रु समाप्त हो गए और वे शत्रु दमन कि धुन में जो भी जड़ या जंगम / देव या दानव उनके सामने पड़ा उसका संहार करने लगीं जब समस्त देवलोक उनको शांत करने के प्रयास में असफल हो गया तो उन्होंने महादेव की प्रार्थना कि और उनसे इस परिश्थिति को सँभालने कि प्रार्थना कि जिसके जवाब में भगवान् शिव जाकर उसके रस्ते में लेट गए और जैसे ही माँ का पैर शिव के शरीर से टकराया वे गयीं और उसी समय लज्जावश उनकी जीभ बाहर निकल आयी ( क्योंकि उन्हें स्मरण हुआ कि उनके एक रूप जो कि माता पारवती का है उस रूप में भगवान् शिव पति तुल्य हुए और पति को लातों से मारना सती शर्मनाक होता है और तभी से उनके जितने भी काली रूप हैं उनमे जीभ / जिव्हा बाहर है)


किन्तु यह तत्व विवेचन नहीं है, तत्व विवेचन के आधार पर सभी देवताओं ने उनको रोकने कि कोशिश की किन्तु वे देवता होने का अहम् नहीं त्याग सके और जब तक अहम् का लेशमात्र भी बाकी है माता महाकाली कि कृपा प्राप्त होना सम्भव ही नहीं है - किन्तु देवादिदेव ने अपने अहम् का परित्याग करके खुद को ही माँ के चरणों में समर्पित कर दिया - यह देखकर माँ को रुकना ही पड़ा - क्योंकि दया कि भंडार और भक्त वत्सल अपने अधीन को न तो दुःख में देख सकती हैं और न ही अवहेलना कर सकती हैं - माँ कि जीभ बाहर आने का बस यही एक कारन था की माँ ने शर्मवश नहीं बल्कि प्रेमवश अपनी जीभ बाहर निकाल दी क्योंकि इतना त्याग और भक्त वत्सलता उन्हें किसी में नजर नहीं आयी -!


आज के परिवेश में भी अक्सर देखा जा सकता है कि जब माँ अपने किसी बच्चे के साथ खेल रही होती है और बच्चे कि कोई कोई बाल सुलभ क्रीड़ा से भाव विह्वल होकर अपनी जीभ बहार निकाल देती है - जीभ बहार निकालना स्त्रियोचित गुण है -!



३. माता महाकाली मुंडों का माला धारण किये हुए हैं :-


मुंडों कि माला धारण करने के पीछे का जो तत्व है वह इंगित करता है कि मानव शरीर में मुंड भाग ही एक ऐसा क्षेत्र है जो व्यक्ति को ब्रह्म से मिला सकता है अर्थात मोक्ष तत्व कि प्राप्ति करा सकता है - मान्यता है कि सिर का वह भाग जहाँ ब्रह्मरंध्र स्थित होता है वहाँ अमृत तत्व के गुण पाये जाते हैं - जैसा कि सुनने में भी आता है अक्सर कि कई सिद्ध योगी आज भी हिमालय के क्षेत्र में पाये जाते हैं जो यदा कदा कुछ भागयशाली लोगों को दिख भी जाते हैं - तो यहाँ पर एक सवाल पैदा होता है कि यह मृत्यु लोक है और यहाँ कि समस्त चीजें नाशवान हैं तो फिर ये योगी क्यों जिन्दा हैं अब तक ? इनका नाश क्यों नहीं हो सका ? इसका बस इतना सा ही जवाब है कि उन सब लोगों ने उस रहस्य को पा लिया जहाँ अमृत तत्व कि उपस्थिति होती है और इस प्रकार वे लोग कालजयी हो गए -!


अर्थात माँ महाकाली अपने भक्तों को सन्देश देती हैं कि वे ही ब्रह्म हैं वे ही कालजयी हैं और जिसने खुद को माता की शरण में दे दिया वह कालजयी हो सकता है एवं इसका एक अन्य सन्दर्भ भी है कि मुंड माला धारण करने के पीची कि वजह यह है कि माँ कहती है कि उसके चरणों में सबको शरण मिलती है चाहे वह पुण्यात्मा हो या दुरात्मा क्योंकि जैसी कि मान्यता है कि माँ ने जिन दुष्ट दैत्यों का संहार किया उनके मुंड काटकर गले में धारण कर लिए -!


४. माता महाकाली का रूप दिगंबरा है :-


माता महाकाली आद्या हैं उनका रूप इस बात को प्रकट करता है कि यह देह और इस पर चढ़ाये जेन वाले अलंकार शाश्वत नहीं हैं - सभी समयातीत हैं और नश्वर हैं - माता आद्या प्रकृति को इंगित करती हैं और प्राकृतिक रूप धारण करती हैं जो आडम्बर और अति का निषेध करता है और प्राकृतिक रूप से सभी दिगंबर ही होते हैं - आडम्बर और आभूषण तो इस दुनिया में आने के बाद ही सम्मिलित होते हैं -!


५. माता महाकाली शवारूढ़ हैं :-


भगवान शिव को देवादिदेव और अजेय माना जाता है - किन्तु यहाँ आकर शिव भी असहाय हो जाते हैं और माता के क़दमों में खुद को समर्पित कर देते हैं और इसके बाद माता खुद ही अपनी गति को नियंत्रित करती हैं - इससे पता चलता है कि शक्ति के बिना शिव तत्व भी शव के समान है - जैसे कि वैदिक एवं अन्य धर्म ग्रंथों भी बताया गया है कि शिव पुरुष तत्व को निरूपित करते हैं तथा माता पार्वती जो शिव कि अर्धांगिनी हैं वे स्त्री तत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं -!


विशेष :- इसका सबसे बड़ा उदहारण आप प्रत्यक्ष देख सकते हैं कि जहाँ भी वैदिक विधान और सत्यापित रूप से शिव लिंग कि स्थापना हुयी होगी वहाँ कहीं भी शिवलिंग कि अकेले स्थापना नहीं होती है शिवलिंग हमेशा योनि पर अवस्थित होता है जिसे सामान्यतया लोग ये समझते हैं कि यह नाली कि तरह कि कलात्मकता है जिससे जब लिंग का अभिषेक किया जाये या जल चढ़ाया जाये तो वह जल बह जाये -!



१. पूजन प्रथम खंड

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ध्यान :-
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ॐ कराल वदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम
आद्यं कालिकां दिव्यां मुंडमाला विभूषिताम
सद्यश्छिन्ना शिरः खडग वामोर्ध्व कराम्बुजाम
महामेघप्रभाम् कालिकां तथा चैव दिगम्बराम्


कंठावसक्तमुंडाली गलद्वधिर चर्चिताम्
कर्णावतंसतानीत शव युग्म भयानकाम
घोरदृष्टाम करालास्यां पीनोन्नत पयोधराम
शवानाम करसंघातै कृतकांची हसनमुखीम्


सृक्कद्वय गलद्वक्त धारा विस्फुरिताननाम
घोररावां महारौद्रीं श्मशानालय वासिनीम्
बालार्क मंडलाकारां लोचन त्रितयांविताम्
दंतुरां दक्षिण व्यापि मुक्तालविकचोच्चयाम


शव रूप महादेव हृदयोपरि संस्थिताम्
शिवाभिर्घोर रावाभिष्चतुर्दिक्षु समन्विताम्
महाकालेन च समं विपरीत रतातुराम
सुख प्रसन्न वदनां स्मेराननसरोरुहाम


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पुष्प समर्पण :-
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ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते
यावत्तवां पूजयिष्यामि तावद्देवी स्थिरा भव

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पुष्पांजलि :-
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ॐ महाकालं यजेद देव्या दक्षिणे धूम्रवर्णकम्
विभ्रतं दंडखटवांगौ दृष्टा भीम मुखं शिवम्
व्याघ्र चर्मावृतकटिं तुन्दिलं रक्त वासनम्
त्रिनेत्र मूर्द्धवकेशन्च मुण्डमाला विभूषिताम
जटाभीषण सच्चंद्र खण्डं तेजो जवलननिव
ॐ हूं स्फ्रों यां रां लां क्रौं महाकाल भैरव
सर्व विघ्ननाशय नाशय ह्रीं श्रीं फट स्वाहा 

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नमस्कार :- 
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शत्रुनाशकरे देवि ! सर्व सम्पत्करे शुभे
सर्व देवस्तुते ! कालिके ! त्वां नमाम्यहम


१. आसन :- प्रथम दिन कि पूजा में माँ को काले रंग के कपडे का / आम कि लकड़ी का सिंहासन जो काले रंग से रंगा गया हो समर्पित करें एवं माँ को उस पर विराजित करने इसके बाद फिर प्रत्येक दिन माँ के चरणों में निम्न मंत्र को बोलते हुए पुष्प / अक्षत समर्पित करें

ॐ आसनं भास्वरं तुङ्गं मांगल्यं सर्वमंगले
भजस्व जगतां मातः प्रसीद जगदीश्वरी
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा आसनं समर्पयामि )

२. पाद्य :- इस क्रिया में शीतल एवं सुवासित जल से चरण धोएं और ऐसा सोचें कि आपके आवाहन पर माँ दूर से आयी हैं और पाद्य समर्पण से माँ को रास्ते में जो श्रम हुआ लगा है उसे आप दूर कर रहे हैं

ॐ गंगादि सलिलाधारं तीर्थं मंत्राभिमंत्रिम
दूर यात्रा भ्रम हरं पाद्यं तत्प्रति गृह्यतां
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा पाद्यं समर्पयामि )

३. उद्वर्तन :- इस क्रिया में माँ के चरणों में सुगन्धित / तिल के तेल को समर्पित करते हैं

ॐ तिल तण्डुल संयुक्तं कुश पुष्प समन्वितं
सुगंधम फल संयुक्तंमर्ध्य देवी गृहाण में
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा उद्वर्तन तैलं समर्पयामि )

४. आचमन :- इस क्रिया में माँ को आचमनी से या लोटे से आचमन जल प्रदान करते हैं ( याद रहे कि जल समर्पित करने का क्रम आप मूर्ति और यदि जल कि निकासी कि सुगम व्यवस्था है तो कर सकते हैं किन्तु यदि आपने कागज के चित्र को स्थापित किया हुआ है तो चित्र के सम्मुख एक पात्र रख लें और जल से सम्बंधित सारी क्रियाएँ करके जल उसी पात्र में डालते जाएँ )

ॐ स्नानादिक विधायापि यतः शुद्धिख़ाप्यते
इदं आचमनीयं हि कालिके देवी प्रगृह्यताम्
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा आचमनीयम् समर्पयामि )

५. स्नान :- इस क्रिया में सुगन्धित पदार्थों से निर्मित जल से स्नान करवाएं ( जल में इत्र , कर्पूर , तिल , कुश एवं अन्य वस्तुएं अपनी सामर्थ्य या सुविधानुसार मिश्रित कर लें यदि सामर्थ्य नहीं है तो सदा जल भी पर्याप्त है जो पूर्ण श्रद्धा से समर्पित किया गया हो )

ॐ खमापः पृथिवी चैव ज्योतिषं वायुरेव च
लोक संस्मृति मात्रेण वारिणा स्नापयाम्यहम्
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा स्नानं निवेदयामि )

६. मधुपर्क :- इस क्रिया में ( पंचगव्य मिश्रित करें प्रथम दिन ( गाय का शुद्ध दूध , दही , घी , चीनी , शहद ) अन्य दिनों में यदि व्यवस्था कर सकें तो बेहतर है अन्यथा सिर्फ शहद से काम लिया जा सकता है

ॐ मधुपर्क महादेवि ब्रह्मध्धे कल्पितं तव
मया निवेदितम् भक्तया गृहाण गिरिपुत्रिके
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा मधुपर्कं समर्पयामि )

विशेष :- ध्यान रखें चन्दन या सिन्दूर में से कोई भी चीज मस्तक पर समर्पित न करें बल्कि माँ के चरणों में समर्पित करें

७. चन्दन :- इस क्रिया में सफ़ेद चन्दन समर्पित करें

ॐ मळयांचल सम्भूतं नाना गंध समन्वितं
शीतलं बहुलामोदम चन्दम गृह्यतामिदं
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा चन्दनं समर्पयामि )

८. रक्त चन्दन :- इस क्रिया में माँ को रक्त / लाल चन्दन समर्पित करें
ॐ रुक्तानुलेपनम् देवि स्वयं देव्या प्रकाशितं
तद गृहाण महाभागे शुभं देहि नमोस्तुते
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा रक्त चन्दनं समर्पयामि )


९. सिन्दूर :- इस क्रिया में माँ को सिन्दूर समर्पित करें

ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वीनाम भूषणाय विनिर्मितम्
गृहाण वर दे देवि भूषणानि प्रयच्छ में
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा सिन्दूरं समर्पयामि )


१०. कुंकुम :- इस क्रिया में माँ को कुंकुम समर्पित करें

ॐ जपापुष्प प्रभम रम्यं नारी भाल विभूषणम्
भाष्वरम कुंकुमं रक्तं देवि दत्तं प्रगृह्य में
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा कुंकुमं समर्पयामि )


११. अक्षत :- अक्षत में चावल प्रयोग करने होते हैं जो काले रंग में रंगे हुए हों

ॐ अक्षतं धान्यजम देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा
प्राणंद सर्वभूतानां गृहाण वर दे शुभे
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा अक्षतं समर्पयामि )

१२. पुष्प :- माता के चरणो में पुष्प समर्पित करें ( फूलों एवं फूलमालाओं का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि यदि आपको काला गुलाब मिल जाये तो बहुत बढ़िया यदि नहीं मिलता तो लाल गुलाब उपयुक्त होगा किन्तु यदि स्थानीय या बाजारीय उपलब्धता के हिसाब से जो उपलब्ध हो वही प्रयोग करें )

ॐ चलतपरिमलामोदमत्ताली गण संकुलम्
आनंदनंदनोद्भूतम् कालिकायै कुसुमं नमः
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा पुष्पं समर्पयामि )

१३. विल्वपत्र :- माता के चरणों में बिल्वपत्र समर्पित करें ( कहीं कहीं पर उल्लेख मिलता कि देवी पूजा में बिल्वपत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है तो इस स्थिति में आप अपने लोक/ स्थानीय प्रचलन का प्रयोग करें )

ॐ अमृतोद्भवम् श्रीवृक्षं शंकरस्व सदाप्रियम
पवित्रं ते प्रयच्छामि सर्व कार्यार्थ सिद्धये
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा बिल्वपत्रं समर्पयामि )

१४. माला :- इस क्रिया में माँ को फूलों कि माला समर्पित करें

ॐ नाना पुष्प विचित्राढ़यां पुष्प मालां सुशोभताम्
प्रयच्छामि सदा भद्रे गृहाण परमेश्वरि
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा पुष्पमालां समर्पयामि )

१५. वस्त्र :- इस क्रिया में माता को वस्त्र समर्पित किये जाते हैं ( एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वस्त्रों कि लम्बाई १२ अंगुल से कम न हो - प्रथम दिन कि पूजा में काले वस्त्र समर्पित किये जाने चाहिए तत्पश्चात [ मौली धागा जिसे प्रायः पुरोहित रक्षा सूत्र के रूप में यजमान के हाथ में बांधते हैं वह चढ़ाया जा सकता है लेकिन लम्बाई १२ अंगुल ही होगी )

अ. ॐ तंतु संतान संयुक्तं कला कौशल कल्पितं
सर्वांगाभरण श्रेष्ठं वसनं परिधीयताम्
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा प्रथम वस्त्रं समर्पयामि )


ब. ॐ यामाश्रित्य महादेवि जगत्संहारकः सदा
तस्यै ते परमेशान्यै कल्पयाम्युत्रीयकम
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि )

१५. धूप :- इस क्रिया में सुगन्धित धुप समर्पित करनी है

ॐ गुग्गुलम घृत संयुक्तं नाना भक्ष्यैश्च संयुतम
दशांग ग्रसताम धूपम् कालिके देवि नमोस्तुते
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा धूपं समर्पयामि )

१६. दीप :- इस क्रिया में शुद्ध घी से निर्मित दीपक समर्पित करना है जो कपास कि रुई से बनी बत्तियों से निर्मित हो

ॐ मार्तण्ड मंडळांतस्थ चन्द्र बिंबाग्नि तेजसाम्
निधानं देवि कालिके दीपोअयं निर्मितस्तव भक्तितः
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा दीपं दर्शयामि )

१७. इत्र :- इस क्रिया में माता को इत्र / सुगन्धित सेंट समर्पित करना है

ॐ परमानन्द सौरभ्यम् परिपूर्णं दिगम्बरम्
गृहाण सौरभम् दिव्यं कृपया जगदम्बिके
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि )

१८. कर्पूर दीप :- इस क्रिया में माँ को कर्पूर का दीपक जलाकर समर्पित करना है

ॐ त्वम् चन्द्र सूर्य ज्योतिषं विद्युद्गन्योस्तथैव च
त्वमेव जगतां ज्योतिदीपोअयं प्रतिगृह्यताम्
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा कर्पूर दीपम दर्शयामि )

१९. नैवेद्य :- इस क्रिया में माता को फल - फूल या भोजन समर्पित करते हैं भोजन कम से कम इतनी मात्रा में हो जो एक आदमी के खाने के लिए पर्याप्त हो बाकि सारा कुछ सामर्थ्यानुसार )

ॐ दिव्यांन्नरस संयुक्तं नानाभक्षैश्च संयुतम
चौष्यपेय समायुक्तमन्नं देवि गृहाण में
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा नैवेद्यं समर्पयामि )

२०. खीर :- इस क्रिया में ढूध से निर्मित खीर चढ़ाएं

ॐ गव्यसर्पि पयोयुक्तम नाना मधुर मिश्रितम्
निवेदितम् मया भक्त्या परमान्नं प्रगृह्यताम्
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा दुग्ध खीरम समर्पयामि )

२१. मोदक :- इस क्रिया में माँ को लड्डू समर्पित करने हैं

ॐ मोदकं स्वादु रुचिरं करपुरादिभिरणवितं
मिश्र नानाविधैर्द्रुव्यै प्रति ग्रह्यशु भुज्यतां
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा मोदकं समर्पयामि )

२२. फल :- इस क्रिया में माता को ऋतु फल समर्पित करने होते हैं

ॐ फल मूलानि सर्वाणि ग्राम्यांअरण्यानि यानि च
नानाविधि सुंगंधीनि गृहाण देवि ममाचिरम
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा ऋतुफलं समर्पयामि )

२३. जल :- इस क्रिया में खान - पान के पश्चात् अब माता को जल समर्पित करें

ॐ पानीयं शीतलं स्वच्छं कर्पूरादि सुवासितम्
भोजने तृप्ति कृद्य् स्मात कृपया प्रतिगृह्यतां
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा जलम समर्पयामि )

२४. करोद्वर्तन जल :- इस क्रिया में माता को हाथ धोने के लिए जल प्रदान करें

ॐ कर्पूरादीनिद्रव्याणि सुगन्धीनि महेश्वरि
गृहाण जगतां नाथे करोद्वर्तन हेतवे
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा करोद्वर्तन जलम समर्पयामि )

२५. आचमन :- इस क्रिया में माता को पुनः आचमन करवाएं

ॐ अमोदवस्तु सुरभिकृतमेत्तदनुत्तमम्
गृह्णाचमनीयम तवं माया भक्त्या निवेदितम्
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा पुनराचमनीयम् समर्पयामि )

२६. ताम्बूल :- इस क्रिया में माता को सुगन्धित पान समर्पित करें

ॐ पुन्गीफलम महादिव्यम नागवल्ली दलैर्युतम्
कर्पूरैल्लास समायुक्तं ताम्बूल प्रतिगृह्यताम्
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा ताम्बूलं समर्पयामि )

२७. काजल :- माता को काजल समर्पित करें

ॐ स्निग्धमुष्णम हृद्यतमं दृशां शोभाकरम तव
गृहीत्वा कज्जलं सद्यो नेत्रान्यांजय कालिके
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा कज्जलं समर्पयामि )


२८. महावर :- इस क्रिया में माँ को लाला रंग का महावर समर्पित करते हैं ( लाल रंग एवं पानी का मिश्रण जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पैरों में लगाती हैं )

ॐ चलतपदाम्भोजनस्वर द्युतिकारि मनोहरम
अलकत्कमिदं देवि मया दत्तं प्रगृह्यताम्
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा महावरम समर्पयामि )

२९. चामर :- इस क्रिया में माँ को चामर / पंखा ढलना होता है

ॐ चामरं चमरी पुच्छं हेमदण्ड समन्वितम्
मायार्पितं राजचिन्ह चामरं प्रतिगृह्यताम्
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा चामरं समर्पयामि )

३० . घंटा वाद्यम् :- इस क्रिया में माँ के सामने घंटा / घंटी बजानी होती है ( यह ध्वनि आपके घर और आपसे सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है एवं आपके मन में प्रसन्नता और हर्ष को जन्म देती है )

ॐ यथा भीषयसे दैत्यान् यथा पूरयसेअसुरम
तां घंटा सम्प्रयच्छामि महिषधिनी प्रसीद में
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा घंटा वाद्यं समर्पयामि )

३१. दक्षिणा :- इस क्रिया में माँ को दक्षिणा धन समर्पित किया जाता है - ( जो कि सामर्थ्यानुसार है )

ॐ काञ्चनं रजतोपेतं नानारत्न समन्वितं
दक्षिणार्थम् च देवेशि गृहाण त्वं नमोस्तुते
( ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा आसनं समर्पयामि )

2. पूजन मध्यम खंड
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काली अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

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भैरवोवाच

शतनाम प्रवक्ष्यामि कालिकाय वरानने ।
यस्य प्रपठनाद्वाग्मी सर्वत्र विजयी भवेत् ॥

अथ स्तोत्रम्
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काली कपालिनी कान्ता कामदा कामसुन्दरी ।
कालारात्रिः कालिका च कालभैरव पूजिता ॥
क्रुरुकुल्ला कामिनी च कमनीय स्वभाविनी ।
कुलीना कुलकत्रीं च कुलवर्त्म प्रकाशिनी ॥
कस्तूरिरसनीला च काम्या कामस्वरूपिणी ।
ककारवर्णनिलया कामधेनुः करालिका ॥
कुलकान्ता करालस्या कामार्त्ता च कलावती ।
कृशोदरी च कामाख्या कौमारी कुलपालिनी ॥
कुलजा कुलमन्या च कलहा कुलपूजिता ।
कामेश्वरी कामकान्ता कुञ्जरेश्वरगामिनी ॥
कामदात्री कामहर्त्री कृष्णा चैव कपर्दिनी ।
कुमुदा कृष्णदेहा च कालिन्दी कुलपूजिता ॥
काश्यापी कृष्णमाता च कुलिशाङ्गी कला तथा ।
क्रीं रूपा कुलगम्या च कमला कृष्णपूजिता ॥
कृशाङ्गी किन्नरी कत्रीं कलकण्ठी च कार्तिकी ।
कम्बुकण्ठी कौलिनी च कुमुदा कामजीविनी ॥
कलस्त्री कीर्तिका कृत्या कीर्तिश्च कुलपालिका ।
कामदेवकला कल्पलता कामाङ्गवर्द्धिनी ॥
कुन्ता च कुमुदप्रीता कदम्बकुसुमोत्सुका ।
कादम्बिनी कमलिनी कृष्णानन्दप्रदायिनी ॥
कुमारीपूजनरता कुमारीगणशोभिता ।
कुमारीरञ्जनरता कुमारीव्रतधारिणी ॥
कङ्काली कमनीया च कामशास्त्रविशारदा ।
कपालखट्वाङ्गधरा कालभैरवरूपिणी ॥
कोटरी कोटराक्षी च काशीकैलासवासिनी ।
कात्यायनी कार्यकरी काव्यशास्त्र प्रमोदिनी ॥
कामाकर्षणरूपा च कामपीठनिवासिनी ।
कङिकनी काकिनी क्रीडा कुत्सिता कलहप्रिया ॥
कुण्डगोलोद्भवप्राणा कौशिकी कीर्तिवर्द्धिनी,
कुम्भस्तनी कलाक्षा च काव्या कोकनदप्रिया ।
कान्तारवासि कान्तिश्च कठिना कृष्णवल्लभा ॥

फलश्रुति

इति ते कथितम् देवि गुह्याद् गुह्यतरम् परम् ।
प्रपठेद्य इदम् नित्यम् कालीनाम शताष्टकम् ॥
त्रिषु लोकेषु देवेशि तस्यासाध्यम् न विद्यते ।
प्रातः काले च मध्याह्ने सायाह्ने च सदा निशि ॥
यः पठेत्परया भक्त्या कालीनाम शताष्टकम् ।
कालिका तस्य गेहे च संस्थानम् कुरुते सदा ॥
शून्यागारे श्मशाने वा प्रान्तरे जलमध्यतः ।
वह्निमध्ये च संग्रामे तथा प्राणस्य संशये ॥
शताष्टकम् जपेन्मंत्री लभते क्षेममुत्तमम्,
कालीं संस्थाप्य विधिवत्श्रुत्वा नामशताष्टकैः ।
साधकः सिद्धिमाप्नोति कालिकायाः प्रसादतः ॥

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काली चालीसा :-
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जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार ।
महिष मर्दिनी कालिका , देहु अभय अपार ॥


अरि मद मान मिटावन हारी । मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता । दुष्टदलन जग में विख्याता ॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै । कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला । हाथ तीसरे सोहत भाला ॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी । शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता । जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी । निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता । तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक । कल्याणी पापी कुल घालक ॥
शेष सुरेश न पावत पारा । गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा । विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥
रूप भयंकर जब तुम धारा । दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे । भक्तजनों के संकट टारे ॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी । भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं । नारद शारद पार न पावैं ॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी । तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता । विश्वविदित भव संकट त्राता ॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी । चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥
त्रेता में रघुवर हित आई । दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला । भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे । कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥
ये बालक लखि शंकर आए । राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई । यही रूप प्रचलित है माई ॥
बाढ्यो महिषासुर मद भारी । पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की । पीर मिटावन हित जन-जन की ॥
तब प्रगटी निज सैन समेता । नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥
मान मथनहारी खल दल के । सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा । पावैं मनवांछित फल मेवा ॥
संकट में जो सुमिरन करहीं । उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं । भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥
काली चालीसा जो पढ़हीं । स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥
करहु मातु भक्तन रखवाली । जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी । भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥

प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥

3. पूजन अंतिम खंड

32. पुष्पांजलि :-


ॐ काली काली महाकाली कालिके पाप नाशिनी
काली कराली निष्क्रान्ते कालिके तवननमोस्तुते
ॐ उत्तिष्ठ देवी चामुण्डे शुभां पूजा प्रगृह्य में
कुरुष्व मम कल्याणमस्टाभि शक्तिभिः सह
भुत प्रेत पिशाचेभ्यो रक्षोभ्यश्च महेश्वरि
देवेभ्यो मानुषोभ्योश्च भयेभ्यो रक्ष मा सदा
सर्वदेवमयीं देवीं सर्व रोगभयापहाम
ब्रह्मेश विष्णु नमिताम् प्रणमामि सदा उमां
आय़ुर्ददातु में काली पुत्रा नादि सदा शिवा
अर्थ कामो महामाया विभवं सर्व मङ्गला
ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि पुष्पांजलिं समर्पयामि


33. नीराजन :- इस क्रिया में पुनः माँ कि प्राथमिक आरती उतारते हैं जिसमे सिर्फ कर्पूर का प्रयोग होता है

ॐ कर्पूरवर्ति संयुक्तं वहयिना दीपितंचयत
नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके

34. क्षमा प्रार्थना :-


ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित स्खलितम् मम
क्षम्यतां तज्जगन्मातः कालिके देवी नमोस्तुते
ॐ विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदरचितम्
पुर्णम्भवतु तत्सर्वं त्वप्रसादान्महेश्वरी
शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्तुं ब्रह्मदयः सुराः
अहं किं वा करिष्यामि मृत्युर्धर्मा नरोअल्पधिः
न जाने अहं स्वरुप ते न शरीरं न वा गुणान्
एकामेव ही जानामि भक्तिं त्वचर्णाबजयोः


35. आरती :- इस क्रिया में माता कि आरती उतारते हैं और यह चरण आपकी उस काल कि साधना के समापन का प्रतीक है -( इसके लिए अलग से कोई आरती जलने कि कोई जरुरत नहीं है आप उसी दीपक का उपयोग करेंगे जो आपने पूजा के प्रारम्भ में घी का दीपक जलाया था )

आरती -

 अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी |
दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी ||
सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, दस भुजाओं वाली |
दुखिंयों के दुखडें निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
माँ बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता |
पूत कपूत सूने हैं पर, माता ना सुनी कुमाता ||
सब पर करुणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली ||
दुखियों के दुखडे निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
नहीं मांगते धन और दौलत, न चाँदी न सोना |
हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना ||
सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली |
सतियों के सत को संवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||

क्रमशः 

जय माता महाकाली 

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