Tara Kali - तारा काली
पहले हम ये देख लेते हैं कि कुल क्या हैं ?
दस महाविद्या परिवार में आद्या माता महाकाली के दस रूप पूजित होते हैं जो निम्न प्रकार हैं :-
- महाकाली
- तारा
- त्रिपुरसुंदरी
- भुवनेश्वरी
- त्रिपुर भैरवी
- धूमावती
- छिन्नमस्ता
- बगला
- मातंगी
- कमला
क्योंकि कहते हैं कि जो इष्ट और मंत्र को बदलता है उससे बड़ा अपराधी कोई और नहीं होता -!
दस महाविद्या साधना को दो मुख्य धाराओं में बांटा जाता है जिसमे से एक धारा का नाम काली कुल और दूसरी धारा का नाम श्री कुल कहा गया है -!
कथित तौर पर या पूर्व वर्णित आख्यानों और गुरुओं के आधार पर काली कुल में सम्मिलित महाविद्याओं की सिद्धि के लिए वाम मार्ग का अनुसरण आवश्यक है एवं श्री कुल कि महाविद्याओं को प्रसन्न या सिद्ध करने के लिए दक्षिण मार्ग का अनुसरण किया जाना चाहिए -!
इसीलिए विज्ञजनों में कई बार इस सम्बन्ध में मतभेद भी होता है और यह मतभेद कई बार वाद और विवाद में भी परिवर्तित हो जाता है - क्योंकि सैद्धांतिक रूप से कोई भी साधक दोनों मार्गों का अनुसरण नहीं कर सकता जिसकी वजह से यदि कोई यह कहे कि उसने दसों महाविद्याओं को सिद्ध कर लिया है तो यह बात हास्यास्पद भी लगती है और साथ ही विवादित भी -!
लेकिन यहाँ पर मैं एक बात का और उल्लेख करना चाहूंगा की यह मेरे हिसाब से मुश्किल भी नहीं है और न ही विवादित तथा न ही हास्यास्पद - क्योंकि मार्गगत प्रतिबन्ध सिर्फ सिद्धियों पर लागु होता है साधना पर नहीं -!
साधना एक विस्तृत अर्थ रखने वाला शब्द है और इसे किसी एक अर्थ में बाँध कर नहीं रखा जा सकता है - साधना एक मार्ग है जिसके रास्ते में बहुत से पड़ाव आते हैं जिनमे से एक पड़ाव सिद्धि नाम का भी होता है - बहुत से मित्रों को देखा है - हर इंसान लघु मार्ग का चयन करके अधिकाधिक प्राप्त कर लेना चाहता है - लेकिन यह किसी कि समझ में नहीं आता कि लघु मार्ग कि आयु भी लघु ही होती है - मेरे पास जितने भी प्रश्न आते हैं सब के सब या तो सिद्धि प्राप्त करने के इच्छुक होते हैं या फिर वशीकरण जैसी तुच्छ चीज के इच्छुक - मैं उनसे पूछता हूँ :- " यह साधना आप क्यों करना चाहते हो " ? जवाब मिलता है = " शुरू से ही मेरी इच्छा थी कि मैं भी साधना करूँ " मुझे अच्छा लगता है ये जानकर और सोचता हूँ कि चलो अभी भी कुछ लोग हैं जो इस दिशा में बढ़ना चाहते हैं - इसके बाद बातों के दौरान ही मैं पूछता हूँ :- " तो आप यह साधना कुछ समय के लिए / किसी खास उद्देश्य कि पूर्ति के लिए चाहते हैं या फिर आजीवन " ? जवाब आता है = " कुछ चाहते हैं उन्हें प्राप्त करना चाहता हूँ - अभी आजीवन के बारे में तो नहीं सोचा लेकिन हां इस बारे में बाद में सोचूंगा - अचानक उसका मन करवट बदलता है और सवाल आता है " अच्छा एक चीज बताओ आप - क्या आप माता के दर्शन करवा सकते हो मुझे " ?
मैं स्तब्ध रह जाता हूँ और जवाब देता हूँ :- " भाई अभी तक तो मैं खुद भी दर्शन नहीं पा सका तो फिर आप से कैसे ये वादा करूँ - हाँ यदि आपके समर्पण में दम हुआ तो यह कोई मुश्किल नहीं है -!
और बस इसके बाद फिर कई दिनों तक निश्तब्धता तत्पश्चात फिर कुछ दिनों के बाद सन्देश आता है " आपके पास यदि कोई शक्तिशाली वशीकरण प्रयोग तो देने कि कृपा करें लेकिन उसमे विधि विधान का ज्यादा झंझट न हो "
मैं उपेक्षित कर देता हूँ सन्देश को और फिर लग जाता हूँ तलाश में किसी अन्य साधक की :::
::: माता तारा :::
सभी विज्ञजनो एवं पूर्व में कर चुके सभी अनुभवी साधकों से मेरा विनम्र निवेदन है कि यदि मेरे इस लिखे विधान में कोई त्रुटि नजर आये तो कृपया मुझे सुझाव प्रदान करें जिससे यह विधान जनहित में और भी अधिक परिष्कृत हो सके - इसके अतिरिक्त सभी नए एवं पुराने साधकों के समक्ष यह स्पष्ट कर दूँ कि यह विधान कोई सिद्धि विधान नहीं यह मातृ इष्ट निर्धारण और आजीवन पूजा पद्धति है - मैं वस्तुतः सिद्धियों के पूर्णतया खिलाफ हूँ और बस समर्पण और प्रेम के माध्यम से महाविद्याओं के चरणों में जगह बनाना चाहता हूँ एवं अन्य उन साधकों के लिए भी ये विधान समर्पित करना चाहता हूँ जो सामयिक सफलता के स्थान पर सर्वकालिक क्षमताओं को विकसित और पल्लवित करना चाहते हैं -!
सिद्धिगत सफलता के लिए माँ तारा कि साधना में वाम मार्ग का अनुसरण करना आवश्यक है - किन्तु यदि हम सिद्धि की जगह भक्ति पर दें तो हम उनकी कृपा किसी भी मार्ग से प्राप्त कर सकते हैं और मैं सात्विक / दक्षिण मार्ग का समर्थक हूँ अतएव मैं इसी मार्ग के विधान यहाँ प्रस्तुत करूँगा -!
किसी भी साधना के मार्ग में गुरु का बहुत बड़ा स्थान होता है एवं सर्वप्रथम गुरु का पूजन होता है इसलिए यदि पहले से ही आपके पास गुरु हैं और आपने गुरु मंत्र लिया हुआ है तो अपने गुरु का एक चित्र या गुरु प्रदत्त यन्त्र को अपने साथ रखें किन्तु यदि आपके पास कोई गुरु नहीं है तो निराश होने कि कोई जरुरत नहीं है आप मेरे गुरु को अपना गुरु स्वीकार करके अपनी साधना प्रारम्भ कर सकते हैं - मेरे गुरु को अपना गुरु स्वीकार करने के लिए आपको कुछ भी खास नहीं करना बस मुझे एक सन्देश भेजें मैं अपने गुरु कि तस्वीर आपको भेज दूंगा और तस्वीर को आप अपने पूजा स्थल में रखकर अपनी साधना के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं :::
साधना मार्ग में आगे बढ़ने से पहले एक बात :- माता तारा का मंत्र " त्रीं " है किन्तु "त्रीं" बीजमंत्र वशिष्ट ऋषि द्वारा शापित कर दिया गया था अतएव "स्त्रीं " को बीज मंत्र के रूप में जपा जाता है इसमें " आधा स " लगाने से शाप विमोचन हो जाता है एवं माँ तारा कि साधना अक्षोभ ऋषि कि पूजा के बिना फलप्रद नहीं होती तथा यदि कोई साधक इस साधना को अक्षोभ ऋषि कि पूजा किये बिना करता है तो वह अपने सर्वस्व का नाश कर बैठता है -!
माता कि साधना में अधिकतम वस्तुएं नीले रंग कि प्रयोग की जानी चाहिए :-
पूजन सामग्री :-
एक आसन - नीला रंग - माँ कि स्थापना के लिए
एक आसन - नीला रंग - माँ कि स्थापना के लिए
एक आसन - नीला रंग - आपकी साधना के लिए
एक ताम्बे कि प्लेट - गुरु चित्र स्थापित करने के लिए
एक ताम्बे का -लोटा - जल रखने के लिए
एक ताम्बे कि छोटी चमची - जल एवं आचमन समर्पण के लिए
एक माला - मंत्र जप के लिए ( काला हकीक / रुद्राक्ष / लाल मूंगा )
गुरु का चित्र , आम की लकड़ी से बना सिंहासन या फिर जो भी उपलब्ध हो सामर्थ्य के अनुसार , सिंहासन वस्त्र ( जो सिंहासन पर बिछाया जायेगा ) माता को समर्पित करने के लिए वस्त्र , माता के लिए श्रंगार सामग्री , साधक के खुद के लिए कपडे जो नीले रंग के होने चाहिए तथा यदि किसी पुरोहित की मदद लेते हैं पूजा में तो पुरोहित के लिए कपडे ( पुरोहित को समर्पित किये जाने वाले कपड़ो में रंग भेद नहीं होगा ) जनेउ , लाल अबीर
२. पान के पत्ते , सुपारी , लौंग , काले तिल , सिंदूर , लाल चंदन ,गाय का घी , गाय का दूध , गाय का गोबर
३. धूप , सुगन्धित अगरबत्ती , रुई , कपूर , पञ्चरत्न , कलश के लिए मिटटी का घड़ा , नारियल ( एक कच्चा और एक सूखा )
४. केले , फल पांच प्रकार के , पांच प्रकार की मिठाई
५. पुष्प , विल्व पत्र ( बेल पत्र ) , आम के पत्ते , केले के पत्ते , गंगाजल , अरघी , पांच बर्तन कांसे के / पीतल के ( २ कटोरी , २ थाली , १ गिलास )
६. आसन कम्बल के - नीला रंग -२ ( यदि पुरोहित साथ में हों तो २ अन्यथा १ ) चौमुखी दीपक , रुद्राक्ष या लाल चन्दन की माला , आम की लकड़ी , माचिस , दूर्वादल ( दूब ) , शहद , शक्कर , पुस्तक ( जिसके विधि विधान से साधना की जानी है ) , जौ , अभिषेक करने के लिए पात्र , विग्रह ( स्नान के बाद और नवेद्य समर्पित करने के पश्चात ) पोंछने के लिए नीला कपडा , शंख , पंचमेवा , मौली , सात रंगों में रंगे हुए चावल , एवं भेंट में प्रदान करने के लिए द्रव्य ( दक्षिणा धन ) !
नित्य पूजा प्रकाश में वर्णित कुछ पूजन से सम्बंधित तथ्य :-
अक्षत :- कम से कम सौ की मात्रा में हों
दूर्वा :- कम से कम सौ की मात्रा में हों
आसन :- आसन समर्पण के समय आसन में पुष्प भी चढाने चाहिए
पाद्य :- चार आचमनी जल उसमे श्यामा घास ( दूर्वा / दूब ) कमल पुष्प देने चाहिए
अर्घ्य :- चार आचमनी जल , गंध पुष्प , अक्षत ( चावल ) दूर्वा , काले तिल , कुशा , एवं सफ़ेद सरसों
आचमन में :- छः आचमनी जल तथा लौंग
मधुपर्क :- कांश्य / ताम्बे के पात्र में घी , शहद , दही
स्नान/ विग्रह :- पचास आचमनी जल
वस्त्र :- वस्त्रों का जोड़ा भेंट करना चाहिए
आभूषण :- स्वर्ण से बने हुए हों या फिर सामर्थ्यानुसार अथवा यदि उपलब्धता न हो तो सांकेतिक या मानसिक आभूषण समर्पण
गंध :- चन्दन , अगर और कर्पूर को एक साथ मिलकर बनाया गया हो
पुष्प :- कई रंग के हों और कम से कम पचास हों
धूप :- गुग्गल का धूप अति उत्तम होता है और कांश्य / ताम्र पात्र में समर्पित करना चाहिए
नैवेद्य :- कम से कम एक व्यक्ति के खाने लायक वस्तुएं होनी चाहिए
दीप :- कपास की रुई में कर्पूर मिलकर लगभग चार अंगुल लम्बी बत्ती होनी चाहिए
सारी सामग्री को अलग अलग बर्तन में होना चाहिए और बर्तन / पात्र स्वर्ण/ रजत / कांश्य / पीतल / ताम्र से निर्मित हों .... या फिर मिटटी के बने हुए हों
अक्षत :- कम से कम सौ की मात्रा में हों
दूर्वा :- कम से कम सौ की मात्रा में हों
आसन :- आसन समर्पण के समय आसन में पुष्प भी चढाने चाहिए
पाद्य :- चार आचमनी जल उसमे श्यामा घास ( दूर्वा / दूब ) कमल पुष्प देने चाहिए
अर्घ्य :- चार आचमनी जल , गंध पुष्प , अक्षत ( चावल ) दूर्वा , काले तिल , कुशा , एवं सफ़ेद सरसों
आचमन में :- छः आचमनी जल तथा लौंग
मधुपर्क :- कांश्य / ताम्बे के पात्र में घी , शहद , दही
स्नान/ विग्रह :- पचास आचमनी जल
वस्त्र :- वस्त्रों का जोड़ा भेंट करना चाहिए
आभूषण :- स्वर्ण से बने हुए हों या फिर सामर्थ्यानुसार अथवा यदि उपलब्धता न हो तो सांकेतिक या मानसिक आभूषण समर्पण
गंध :- चन्दन , अगर और कर्पूर को एक साथ मिलकर बनाया गया हो
पुष्प :- कई रंग के हों और कम से कम पचास हों
धूप :- गुग्गल का धूप अति उत्तम होता है और कांश्य / ताम्र पात्र में समर्पित करना चाहिए
नैवेद्य :- कम से कम एक व्यक्ति के खाने लायक वस्तुएं होनी चाहिए
दीप :- कपास की रुई में कर्पूर मिलकर लगभग चार अंगुल लम्बी बत्ती होनी चाहिए
सारी सामग्री को अलग अलग बर्तन में होना चाहिए और बर्तन / पात्र स्वर्ण/ रजत / कांश्य / पीतल / ताम्र से निर्मित हों .... या फिर मिटटी के बने हुए हों
पूजन प्रारम्भ :::
१. गणेश पूजन ::
आवाहन :- गदा बीज पूरे धनु शूल चक्रे
सरोजोत्पले पाशधान्या ग्रदन्तानकरै संदधानं
स्वशुंडा ग्रराजन मणीकुंभ मंकाधि रूढं स्वपत्न्या
सरोजन्मा भुषणानाम्भ रेणोज्जचलम
द्धस्त्न्वया समालिंगिताम करीद्राननं चन्द्रचूडाम
त्रिनेत्र जगन्मोहनम रक्तकांतिम भजेत्तमम
गणपति पंचोपचार पूजन :::
ॐ गंगाजले स्नानियम समर्पयामि श्री गणेशाय नमः
ॐ अक्षतं समर्पयामि भगवते श्री गणपति नमः
ॐ वस्त्रं समर्पयामि भगवान् श्री गणपति नमः
ॐ चन्दनं समर्पयामि भगवान् गणपति इदं आगच्छ इहतिष्ठ
ॐ विल्वपत्रम समर्पयामि भगवते श्री गणपति नमः
ॐ पुष्पं समर्पयामि भगवान् श्री गणपति नमः
ॐ नवेद्यम समर्पयामि भगवान् गणपति इदं आगच्छ इहतिष्ठ
इस प्रकार पंचोपचार पूजन के पश्चात् हाथ जोड़कर भगवान् गणपति की अराधना निम्न स्तोत्र के द्वारा करें :::
विश्वेश माधवं ढुंढी दंडपाणि बन्दे काशी
गुह्या गंगा भवानी मणिक कीर्णकाम
वक्रतुंड महाकाय कोटि सूर्य सम प्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा
सुमश्वश्यैव दन्तस्य कपिलो गज कर्ण कः
लम्बरोदस्य विकटो विघ्ननासो विनायकः
धूम्रकेतु गर्णाध्यक्ष तो भालचन्द्रो गजाननः
द्वादशैतानि नमामि च पठेच्छणु यादपि
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते
शुक्लां वर धरं देवं शशि वर्ण चतुर्भुजम
प्रसन्न वदनं ध्यायेत सर्वविघ्नोप शान्तये
अभीष्ट सिध्धार्थ सिद्ध्यर्थं पूजितो य सुरासुरै
सर्व विघ्नच्छेद तस्मै गणाधिपते नमः
इसके पश्चात् सद्गुरु का आवाहन और पूजन करें :-
गुरु आवाहन मंत्र :-
सहस्रदल पद्मस्थ मंत्रात्मा नमुज्ज्वलम
तस्योपरि नादविन्दो मर्घ्ये सिन्हास्नोज्ज्वले
चिंतयेन्निज गुरुम नित्यं रजता चल सन्निभम
वीरासन समासीनं मुद्रा भरण भूषितं
इसके पश्चात् गुरु देव का पंचोपचार विधि से पूजन करें :-
ॐ गंगाजले स्नानियम समर्पयामि श्री गुरुभ्यै नमः
ॐ अक्षतं समर्पयामि भगवते श्री गुरुभ्यै नमः
ॐ वस्त्रं समर्पयामि भगवान् श्री गुरुभ्यै नमः
ॐ चन्दनं समर्पयामि भगवान् गुरुभ्यै इदं आगच्छ इहतिष्ठ
ॐ विल्वपत्रम समर्पयामि भगवते श्री गुरुभ्यै नमः
ॐ पुष्पं समर्पयामि भगवान् श्री गुरुभ्यै नमः
ॐ नवेद्यम समर्पयामि भगवान् गुरुभ्यै इदं आगच्छ इहतिष्ठ
इसके पश्चात् गुरुस्तोत्र का पाठ करें :-
१. गणेश पूजन ::
आवाहन :- गदा बीज पूरे धनु शूल चक्रे
सरोजोत्पले पाशधान्या ग्रदन्तानकरै संदधानं
स्वशुंडा ग्रराजन मणीकुंभ मंकाधि रूढं स्वपत्न्या
सरोजन्मा भुषणानाम्भ रेणोज्जचलम
द्धस्त्न्वया समालिंगिताम करीद्राननं चन्द्रचूडाम
त्रिनेत्र जगन्मोहनम रक्तकांतिम भजेत्तमम
गणपति पंचोपचार पूजन :::
ॐ गंगाजले स्नानियम समर्पयामि श्री गणेशाय नमः
ॐ अक्षतं समर्पयामि भगवते श्री गणपति नमः
ॐ वस्त्रं समर्पयामि भगवान् श्री गणपति नमः
ॐ चन्दनं समर्पयामि भगवान् गणपति इदं आगच्छ इहतिष्ठ
ॐ विल्वपत्रम समर्पयामि भगवते श्री गणपति नमः
ॐ पुष्पं समर्पयामि भगवान् श्री गणपति नमः
ॐ नवेद्यम समर्पयामि भगवान् गणपति इदं आगच्छ इहतिष्ठ
इस प्रकार पंचोपचार पूजन के पश्चात् हाथ जोड़कर भगवान् गणपति की अराधना निम्न स्तोत्र के द्वारा करें :::
विश्वेश माधवं ढुंढी दंडपाणि बन्दे काशी
गुह्या गंगा भवानी मणिक कीर्णकाम
वक्रतुंड महाकाय कोटि सूर्य सम प्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा
सुमश्वश्यैव दन्तस्य कपिलो गज कर्ण कः
लम्बरोदस्य विकटो विघ्ननासो विनायकः
धूम्रकेतु गर्णाध्यक्ष तो भालचन्द्रो गजाननः
द्वादशैतानि नमामि च पठेच्छणु यादपि
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते
शुक्लां वर धरं देवं शशि वर्ण चतुर्भुजम
प्रसन्न वदनं ध्यायेत सर्वविघ्नोप शान्तये
अभीष्ट सिध्धार्थ सिद्ध्यर्थं पूजितो य सुरासुरै
सर्व विघ्नच्छेद तस्मै गणाधिपते नमः
इसके पश्चात् सद्गुरु का आवाहन और पूजन करें :-
गुरु आवाहन मंत्र :-
सहस्रदल पद्मस्थ मंत्रात्मा नमुज्ज्वलम
तस्योपरि नादविन्दो मर्घ्ये सिन्हास्नोज्ज्वले
चिंतयेन्निज गुरुम नित्यं रजता चल सन्निभम
वीरासन समासीनं मुद्रा भरण भूषितं
इसके पश्चात् गुरु देव का पंचोपचार विधि से पूजन करें :-
ॐ गंगाजले स्नानियम समर्पयामि श्री गुरुभ्यै नमः
ॐ अक्षतं समर्पयामि भगवते श्री गुरुभ्यै नमः
ॐ वस्त्रं समर्पयामि भगवान् श्री गुरुभ्यै नमः
ॐ चन्दनं समर्पयामि भगवान् गुरुभ्यै इदं आगच्छ इहतिष्ठ
ॐ विल्वपत्रम समर्पयामि भगवते श्री गुरुभ्यै नमः
ॐ पुष्पं समर्पयामि भगवान् श्री गुरुभ्यै नमः
ॐ नवेद्यम समर्पयामि भगवान् गुरुभ्यै इदं आगच्छ इहतिष्ठ
इसके पश्चात् गुरुस्तोत्र का पाठ करें :-
श्री गुरुस्तोत्रम् :-
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥२॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशालाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥३॥
स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं येन कृत्स्नं चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥४॥
चिद्रूपेण परिव्याप्तं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥५॥
सर्वश्रुतिशिरोरत्नसमुद्भासितमूर्तये ।
वेदान्ताम्बूजसूर्याय तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥६॥
चैतन्यः शाश्वतः शान्तो व्योमातीतोनिरञ्जनः ।
बिन्दूनादकलातीतस्तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥७॥
ज्ञानशक्तिसमारूढस्तत्त्वमालाविभूषितः ।
भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥८॥
अनेकजन्मसम्प्राप्तकर्मेन्धनविदाहिने ।
आत्मञ्जानाग्निदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥९॥
शोषणं भवसिन्धोश्च प्रापणं सारसम्पदः ।
यस्य पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१०॥
न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।
तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥११॥
मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः ।
मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१२॥
गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् ।
गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१३॥
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुंतं नमामि ॥१४॥
=========================================================
इसके पश्चात् पृथ्वी शुद्धि करण कर लें
=========================================================
प्रथ्वी शुद्धि मंत्र :-
ॐ अपरषन्तु ये भूता ये भूता भूवि संस्थिता
ये भूता विघ्नकर्ता रश्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया
==========================================================
इसके पश्चात् अक्षोभ ऋषि का पंचोपचार विधि से पूजन करें :-
ॐ गंगाजले स्नानियम समर्पयामि श्री अक्षोभ ऋषये नमः
ॐ अक्षतं समर्पयामि भगवते श्री अक्षोभ ऋषये नमः
ॐ वस्त्रं समर्पयामि भगवान् श्री अक्षोभ ऋषये नमः
ॐ चन्दनं समर्पयामि श्री अक्षोभ ऋषये नमः
ॐ विल्वपत्रम समर्पयामि श्री अक्षोभ ऋषये नमः
ॐ पुष्पं समर्पयामि भगवान् श्री अक्षोभ ऋषये नमः
ॐ नवेद्यम समर्पयामि श्री अक्षोभ ऋषये नमः
तत्पश्चात निम्न मंत्र को २१ /५१ /एक माला जाप कर लें
" ॐ अक्षोभ्य ऋषये नम: "
===========================================================
इसके पश्चात् माता के पूजन की प्रक्रिया प्रारंभ होता होती जिसमे सर्व प्रथम संकल्प के लिए हाथ की अंजुली पर पान , सुपारी , द्रव्य ( धन ) गंगाजल , अक्षत , पुष्प , तिल लेकर निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें :-
ॐ विष्णु विश्नुर्विष्णु श्री मद भगवतो महा पुरुषस्य विष्णो राज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्राह्मणोंह्विं द्वितीय प्रह्रार्द्धे , श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्त- मन्वन्तरे अष्टान्विशा तितमे युगे कलियुगे कलिप्रथम चरणे भूर्लोक जम्बू द्विपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्त देशे " अमुक नगरे " " अमुक ग्रामे " " अमुक स्थाने " वा बुद्धावतारे " अमुक नाम " संवत्सरे श्री सूर्य " अमुकायने " " अमुक तौ महा मांगल्य प्रद मासोत्तमे मासे " " अमुक मासे " " अमुक पक्षे " " अमुक तिथौ " " अमुक नक्षत्रो " " अमुक वासरे " " अमुक योगे " " अमुक करणे " " अमुक राशि स्थिते " देव गुरौ शेषेसु ग्रहेषु च यथा " अमुक शर्मा " महात्मनः मनोकामना पूर्ति , धन , जन , सुख सम्पदा प्रसन्नता परिवार सुख शांतिः , ग्राम सुख शांतिः हेतु , सफलता हेतु श्री तारा पूजन - कलश स्थापन - हवन - कर्म - आरती कर्म अहम् करिश्येत :::
प्रथम पूजन खंड
स्तुति :-
प्रत्यालीढ़ पदार्पिताग्ध्रीशवहृद घोराटटहासा
पराखड़गेन्दीवरकर्त्री खर्परभुजा हुंकार बीजोद्भवा,
खर्वानीलविशालपिंगलजटाजूटैकनागैर्युताजाड्यन्न्यस्य
कपालिके त्रिजगताम हन्त्युग्रतारा स्वयं
आवाहन :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं आगच्छय आगच्छय ::
प्रत्यालीढ़ पदार्पिताग्ध्रीशवहृद घोराटटहासा
पराखड़गेन्दीवरकर्त्री खर्परभुजा हुंकार बीजोद्भवा,
खर्वानीलविशालपिंगलजटाजूटैकनागैर्युताजाड्यन्न्यस्य
कपालिके त्रिजगताम हन्त्युग्रतारा स्वयं
आवाहन :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं आगच्छय आगच्छय ::
आसन :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं आसनं समर्पयामि ::
पाद्य :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं पाद्यं समर्पयामि ::
अर्घ्य :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं अर्घ्यं समर्पयामि ::
आचमन :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं आचमनीयं निवेदयामि ::
मधुपर्क :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं मधुपर्कं समर्पयामि ::
आचमन :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं पुनराचमनीयम् निवेदयामि ::
स्नान :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं स्नानं निवेदयामि ::
वस्त्र :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं प्रथम वस्त्रं समर्पयामि ::
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि ::
आभूषण :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं आभूषणं समर्पयामि ::
सिन्दूर :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं सिन्दूरं समर्पयामि ::
कुंकुम :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं कुंकुमं समर्पयामि ::
गन्ध / इत्र :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि ::
पुष्प :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं पुष्पं समर्पयामि ::
धूप / अगरबत्ती :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं धूपं समर्पयामि ::
दीप :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं दीपं दर्शयामि ::
नैवेद्य :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं नैवेद्यं समर्पयामि ::
मध्यम पूजन खंड :-
नैवेद्य समर्पण के बाद पूजन का मध्यम क्रम आरम्भ होता है जिसमे शप्तशती पाठ एवं अन्य कर्म सम्पादित किये जाते हैं :-
अष्टोत्तरशत नाम :- 108 Name of Mata Tara Kali
- तारणी
- तरला
- तन्वी
- तारातरुण
- बल्लरी
- तीररूपातरी
- श्यामा
- तनुक्षीन
- पयोधरा
- तुरीया
- तरला
- तीब्रगमना
- नीलवाहिनी
- उग्रतारा
- जया
- चंडी
- श्रीमदेकजटाशिरा
- परा
- परात्परा
- अतीता
- चित्परा
- तत्परा
- तदतीता
- सर्वातीता
- महानीला
- शिवपालिनी
- शिवपोषिणी
- शिवमाता
- विषहरा
- नीलतारा
- श्यामला
- उग्रा
- भक्तपालिनी
- भवतारिणी
- द्वितीया
- एकांका
- जगत्पालिनी
- भयहारिणी
- भक्तवत्सला
- सरस्वती
- नील सरस्वती
- वेदारंभा
- वेदाधारा
- विजया
- मंगला
- कपालिका
- श्मशाना
- श्मशानप्रिय
- खड्गधारिणी
- खर्परा
- हुंकारा
- जगत हंत्री
- घोराटटहासा
- विशाला
- नाग आभूषणा
- गरलहर्ता
- सुधा
- सुधादायिनी
- शिवप्राणरक्षिता
- अम्बिका
- अम्बा
- आनंदा
- अक्षोभ पूजिता
- काली
- कृष्णा
- कृष्णवर्णा
- देवपालिनी
- सर्वदेव प्रपूजिता
- आद्या
- अघोरा
- वामा खेपा पूजिता
- वामा खेपा माता
- वामा खेपा रक्षिता
- कालहर्त्री
- कपर्दिनी
- कुलपूजिता
- कृत्या
- कृशांगी
- कुलपालिका
- कंकाली
- मुण्डमालधारिणी
- शववाहिनी
- श्मशानालयवासिनी
- अचिन्त्यामिताकार
- शक्तिस्वरूपा
- गुणातीता
- परम्ब्रह्मरूपिणी
- सिद्धा
- सिद्धिदात्री
- अघोर प्रपूजिता
- नेत्रा
- नेत्रोत्पन्ना
- अघोरा काली
- अनादिरूपा
- अनन्ता
- दिव्या
- दिव्य ज्ञाना
- महामाया
- सुखदा
- सुखमूला
- दुष्टमुण्ड विदारिणी
- दुष्ट हंता
- दानव विदारिणी
- भक्त रक्षिता
- ज्ञानदा
- मोक्षदा
- सत्वैक मूर्ति
- सिद्ध प्रपूजिता
तारास्तोत्रम् - Tara Stotram
मातर्नीलसरस्वति प्रणमतां सौभाग्यसम्पत्प्रदे
प्रत्यालीढपदस्थिते शवहृदि स्मेराननाम्भोरुहे ।
फुल्लेन्दीवरलोचने त्रिनयने कर्त्रीकपालोत्पले खङ्गं
चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये ॥१॥
वाचामीश्वरि भक्तिकल्पलतिके सर्वार्थसिद्धिश्वरि
गद्यप्राकृतपद्यजातरचनासर्वार्थसिद्धिप्रदे ।
नीलेन्दीवरलोचनत्रययुते कारुण्यवारान्निधे
सौभाग्यामृतवर्धनेन कृपयासिञ्च त्वमस्मादृशम् ॥२॥
खर्वे गर्वसमूहपूरिततनो सर्पादिवेषोज्वले
व्याघ्रत्वक्परिवीतसुन्दरकटिव्याधूतघण्टाङ्किते ।
सद्यःकृत्तगलद्रजःपरिमिलन्मुण्डद्वयीमूर्द्धज-
ग्रन्थिश्रेणिनृमुण्डदामललिते भीमे भयं नाशय ॥३॥
मायानङ्गविकाररूपललनाबिन्द्वर्द्धचन्द्राम्बिके
हुम्फट्कारमयि त्वमेव शरणं मन्त्रात्मिके मादृशः ।
मूर्तिस्ते जननि त्रिधामघटिता स्थूलातिसूक्ष्मा
परा वेदानां नहि गोचरा कथमपि प्राज्ञैर्नुतामाश्रये ॥४॥
त्वत्पादाम्बुजसेवया सुकृतिनो गच्छन्ति सायुज्यतां
तस्याः श्रीपरमेश्वरत्रिनयनब्रह्मादिसाम्यात्मनः ।
संसाराम्बुधिमज्जने पटुतनुर्देवेन्द्रमुख्यासुरान्
मातस्ते पदसेवने हि विमुखान् किं मन्दधीः सेवते ॥५॥
मातस्त्वत्पदपङ्कजद्वयरजोमुद्राङ्ककोटीरिणस्ते
देवा जयसङ्गरे विजयिनो निःशङ्कमङ्के गताः ।
देवोऽहं भुवने न मे सम इति स्पर्द्धां वहन्तः परे
तत्तुल्यां नियतं यथा शशिरवी नाशं व्रजन्ति स्वयम् ॥६॥
त्वन्नामस्मरणात्पलायनपरान्द्रष्टुं च शक्ता न ते
भूतप्रेतपिशाचराक्षसगणा यक्षश्च नागाधिपाः ।
दैत्या दानवपुङ्गवाश्च खचरा व्याघ्रादिका जन्तवो
डाकिन्यः कुपितान्तकश्च मनुजान् मातः क्षणं भूतले ॥७॥
लक्ष्मीः सिद्धिगणश्च पादुकमुखाः सिद्धास्तथा वैरिणां
स्तम्भश्चापि वराङ्गने गजघटास्तम्भस्तथा मोहनम् ।
मातस्त्वत्पदसेवया खलु नृणां सिद्ध्यन्ति ते ते गुणाः
क्लान्तः कान्तमनोभवोऽत्र भवति क्षुद्रोऽपि वाचस्पतिः ॥८॥
ताराष्टकमिदं पुण्यं भक्तिमान् यः पठेन्नरः ।
प्रातर्मध्याह्नकाले च सायाह्ने नियतः शुचिः ॥९॥
लभते कवितां विद्यां सर्वशास्त्रार्थविद्भवेत्
लक्ष्मीमनश्वरां प्राप्य भुक्त्वा भोगान्यथेप्सितान् ।
कीर्तिं कान्तिं च नैरुज्यं प्राप्यान्ते मोक्षमाप्नुयात् ॥१०॥
॥इति श्रीनीलतन्त्रे तारास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
।। तारा प्रत्य़ञ्गिरा कवचम् ।। Tara Pratyangira Kawcham
।।
ईश्वर उवाच
ॐ तारायाः स्तम्भिनी देवी मोहिनी क्षोभिनी तथा ।
हस्तिनी भ्रामिनी रौद्री संहारण्यापि तारिणी ।
शक्तयोहष्टौ क्रमादेता शत्रुपक्षे नियोजितः ।
धारिता साधकेन्द्रेण सर्वशत्रु निवारिणी ।।
ॐ स्तम्भिनी स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् स्तम्भय स्तम्भय ।
ॐ क्षोभिनी स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् क्षोभय क्षोभय ।
ॐ मोहिनी स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् मोहय मोहय ।
ॐ जृम्भिनी स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् जृम्भय जृम्भय ।।
ॐ भ्रामिनी स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् भ्रामय भ्रामय ।
ॐ रौद्री स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् सन्तापय सन्तापय ।
ॐ संहारिणी स्त्रें स्त्रें मम शत्रुन् संहारय संहारय ।
ॐ तारिणी स्त्रें स्त्रें सर्व्वपद्भ्यः सर्व्वभूतेभ्यः सर्व्वत्र
रक्ष रक्ष मां स्वाहा ।।
य इमां धारयेत् विध्यां त्रिसन्ध्यं वापि यः पठेत् ।
स दुःखं दूरतस्त्यक्त्वा ह्यन्याच्छत्रुन् न संशयः ।
रणे राजकुले दुर्गे महाभये विपत्तिषु ।
विध्या प्रत्य़ञ्गिरा ह्येषा सर्व्वतो रक्षयेन्नरं ।।
अनया विध्या रक्षां कृत्वा यस्तु पठेत् सुधी ।
मन्त्राक्षरमपि ध्यायन् चिन्तयेत् नीलसरस्वतीं ।
अचिरे नैव तस्यासन् करस्था सर्व्वसिद्ध्यः
ॐ ह्रीं उग्रतारायै नीलसरस्वत्यै नमः ।।
इमं स्तवं धीयानो नित्यं धारयेन्नरः ।
सर्व्वतः सुखमाप्नोति सर्व्वत्रजयमाप्नुयात् ।
नक्कापि भयमाप्नोति सर्व्वत्रसुखमाप्नुयात् ।।
।। इति रूद्रयामले श्रीमदुग्रताराया प्रत्य़ञ्गिरा कवचम् समाप्तम् ।।
प्रणामाज्जलि / पुष्पांजलि :-
:: ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं महामाया त्रिगुणा या दिगम्बरी पुष्पांजलिं समर्पयामि ::
नीराजन :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं नीराजनं समर्पयामि ::
दक्षिणा :-
::ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं दक्षिणां समर्पयामि ::
अपराधा क्षमा याचना :-
अपराधसहस्राणि क्रियंतेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥१॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥२॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥३॥
अपराधशतं कृत्वा जगदंबेति चोचरेत् ।
यां गर्ति समबाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ॥४॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदंबिके ।
ड्रदानीमनुकंप्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ॥५॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् च ।
तत्सर्व क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥६॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानंदविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ॥७॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि ॥८॥
आरती :-
आरती :-
मंगल की सेवा सुन मेरी देवा, हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तारा तेरी भेंट करे।।
सुन जगदम्बा कर न विलम्बा, संतन के भण्डार भरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशाली, जय काली कल्याण करे ।।
सुन जगदम्बा कर न विलम्बा, संतन के भण्डार भरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशाली, जय काली कल्याण करे ।।
बुद्वि -विधाता तू जग माता, मेरा कारज सिद्व करे।
चरण कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन परे ।।
जब -जब भीड़ पड़े भक्तन पर, तब -तब आय सहाय करे ।
बार -बार ते सब जग मोहयो, तरूणी रूप अनूप धरे ।।
माता होकर पुत्र खिलावे, भार्या होकर भोग करे।
संतन सुखदाई सदा सहाई, संत खड़े जयकार करे ।।
ब्रह्मा विष्णु महेश फल लिए, भेंट देन तेरे द्वार खड़े ।
अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र फिरे ।।
बार शनिश्चर कुम कुम बरणी, जब लांगुर पर हुक्म करे ।
खड़ग खप्पर त्रिशूल हाथ लिए, रक्तबीज को भस्म करे ।।
शुम्भ निशुम्भ पछाड़े माता, महिषासुर को पकड़ दले ।
आदित बार आदि का राजत, अपने जन का कष्ट हरे ।।
कोप करा जब दानव मारे, चण्ड मुण्ड सब चूर करे ।
सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता, जन की अर्ज कबूर करे ।।
सिंह पीठ पर चढ़ी भवानी, अटल भवन में राज करे।
मंगल की सेवा सुन मेरी देवा, हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े ।।
जन्मान्तर कृतानि च,
तानि तानि प्रनश्यन्ति,
प्रदक्षिणायाम् पदे पदे ।
Jai Maya Tara
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