Saturday 29 March 2014

नवरात्र घट/कलश स्थापना - Navratri Ghat / Kalash Sthapna - Ghat Pujan

नवरात्र घट/कलश स्थापना - Navratri Ghat / Kalash Sthapna 



घट या कलश स्थापन नवरात्रों के पूजन का बहुत महत्तवपूर्ण अंग है और इसके बिना नवरात्रों की साधना अधूरी मानी जाती है - हालाँकि पारम्परिक समाज में सभी को पता होता है कि घट स्थापना कैसे कि जाती है लेकिन जो लोग नए साधक हैं और पहली बार माता कि साधना करना चाहते हैं उनके लिए मैं घट पूजन का विधान बताने जा रहा हूँ कि किस प्रकार से आप लोग घट कि स्थापना एवं पूजन करेंगे :-

सर्वप्रथम अपने स्थानीय पंचांग या पंडितों के परामर्श के अनुसार मुहूर्त ज्ञात कर लें इसके पश्चात् जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करके सर्वप्रथम कलश स्थापना की तैयारी निम्न सामग्री के साथ करें -!

कलश / घट स्थापना के लिए सामग्री कि सूची निम्नवत है :-

सामग्री :-

जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र
जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी
पात्र में बोने के लिए जौ
घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल या गंगाजल
मोली/कलेवा/हाथ पर रक्षा बंधन हेतु
कुछ साबुत पान
इत्र
साबुत सुपारी
कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के
अशोक या आम के 5 पत्ते
कलश ढकने के लिए ढक्कन
ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल या गेंहू
पानी वाला नारियल
नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा
फूल माला

घट स्थापना की विधि :-
प्रतिपदा / प्रथम तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प करें .

"मैं --अपना नाम -- सुपुत्र श्री / सुपुत्री / पत्नी -- अपने पिता / पति का नाम बोलें --- पक्ष का नाम बोलें (शुक्ल पक्ष ) -- वाशर का नाम बोलें (दिन ) अपने घर परिवार और घर के सुख एवं शांति तथा उन्नति एवं अखंड भक्ति हेतु नवरात्रि व्रत एवं नव दिनों कि पूजा का संकल्प लेता हूँ / लेती हूँ "


उपरोक्त तरीके से व्रत का संकल्प लेकर ब्राह्मण द्वारा या स्वयं ही मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें - इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं - अब फिर एक परत जौ की बिछाएं - इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं - मिट्टी में जौ के दाने तथा जल मिलाकर वेदिका का निर्माण के पश्चात उसके उपर कलश स्थापित करें - स्थापना हेतु मिट्टी अथवा साधना के अनुकूल धातु का कलश लेकर उसमे पूर्ण रूप से जल एवं गंगाजल भर कर कलश के ऊपर नारियल को लाल वस्त्र/चुनरी से लपेट कर अशोक वृक्ष या आम के पाँच पत्तो सहित रखना चाहिए। कलश के कंठ पर मोली बाँध दें। कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें - कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें - ढक्कन में चावल / गेंहू भर दें। नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें।

घट में सबसे पहले वरुण देव का आवाहन करें और निम्न मंत्र बोलते हुए " ॐ नवरात्र पूजनार्थे वरुण देवाय आवाह्यामि " और इस मंत्र का उच्चारण करते हुए कलश के अंदर एक पान एक सुपारी और कुछ पैसे डाल दें -! इसके पश्चात् अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। “हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इस में पधारें।”

इसके पश्चात् दीपक जलाकर कलश का पूजन करें - इसके पश्चात् कलश को धूपबत्ती दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें।

कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी की स्थापना की जाती है - चौकी कि स्थापना के बाद गौरी गणेश का पूजन होगा इसके लिए गाय के गोबर और पीली मिटटी कि आवश्यकता होती है - गोबर से एक लिंगाकार आकृति बनायें उसमे ऊपर के तरफ एक ऊँगली से नीचे दबाएँ जिससे एक स्थान सा बन जायेगा उस स्थान में सिंदूर भर दें -इसके बाद पीली मिटटी की पांच या सात डली रखें और उन पर भी सिंदूर लगाएं और इस प्रकार कल्पना करें कि आप माता गौरी सहित प्रथम पूजित गणेश जी कि पूजा कर रहे हैं - यह क्रिया करने के बाद निम्न प्रकार प्रार्थना करें :-


" ॐ नवरात्र्यै महापर्वे नव दिवसे पूजनार्थे गौरी सह गणेश आवाहयामि "


" नवरात्रों के इस पवन अवसर पर मैं माता गौरी सहित भगवान गणेश का आवाहन करता / करती हूँ कृपया मेरे पूजन स्थल में पधारकर समस्त विघ्नों का निवारण करें और मेरी पूजा को सफल बनायें "


इसके बाद माता नवदुर्गा कि स्थापना होगी - माता नवदुर्गा कि स्थापना कलश के दायें भाग में करें एवं गौरी गणेश कि स्थापना माता नवदुर्गा कि चौकी के सामने करें -!


तत्पश्चात यदि आप गुरु मंत्र धारी हैं एवं गुरु पूजा करते हैं तो माता कि चौकी के सामने ही गुरु चित्र / गुरु यंत्र जो भी उपलब्ध हो उसकी स्थापना करें - गुरु कि पंचोपचार विधि से पूजा करें इसके पश्चात् माता कि सोलह उपचारों से पूजा करें -!

नोट :- बहुत से भाई एवं बहनों को संस्कृत मन्त्रों के उच्चारण में महसूस होती है अतएव यदि वे संस्कृत मन्त्रों का उच्चारण न कर सकें तो वही प्रार्थना अपनी लोक भाषा में कर सकते हैं - बस इतना ध्यान रखें कि वह आवाहन और प्रार्थना आपके ह्रदय से निकली होनी चाहिए -!


जय माँ महाकाली

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