Tuesday, 29 September 2015

Bama Khepa - Vama Kshepa - बामा खेपा - वामा क्षेपा ( बीरभूमि का संत ) Saint of Beerbhumi Bengal - Part 1

बामा खेपा या बामाचरण चट्टोपाध्याय भाग -१ 



नाम :- बामाचरण चट्टोपाध्याय

उपरोक्त नाम रखने का कारण :- चूँकि माँ तारा का एक नाम बामा भी है और माँ तारा के मंदिर में इनकी माता के धरना देने के बाद ही इनका जन्म हुआ था।
दूसरा कारण यह भी है कि कि शिवरात्रि की रात में चारों पहरों के नाम शिव जी अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं यथा :


  1. गंगानाथ 
  2. अधराय 
  3. बामदेव 
  4. सद्योजात 

प्रसिद्द नाम :- माँ तारा के पुत्र रूप में ख्याति प्राप्त बामा खेपा / क्षेपा। 

जन्म :- 5 मार्च 1837

जन्म दिवस :- शिव रात्रि या शिव चतुर्दशी

जन्म स्थल :- भारत के पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले की रामपुरहाट उप-डिवीजन के आटला गांव

स्थानीय जन्म कैलेंडर :- बंगला सन १२८८, १२ फाल्गुन, शिव रात्रि की रात्रि का तृतीय प्रहर

पिता का नाम :- सर्वानंद चट्टोपाध्याय

इष्ट :- माँ तारा 

इष्ट सम्बोधन :- बड़ी माँ 

गुरु :- योगी कैलाशपति 

साधना स्थल :- तारापीठ महाश्मशान 

पिता का व्यवसाय :- स्थानीय संगीत विधा (श्यामा संगीत गायक )

आर्थिक स्थिति :- दयनीय 

जन्मदात्री माता :- भुवनेश्वरी देवी

भाई - बहन :-
  1. जय काली 
  2. बामाचरण
  3. दुर्गा 
  4. द्रवमयी 
  5. सुंदरी 
  6. रामचरण 
मृत्यु या महा समाधि :- 22 जून 1911

महा समाधि दिवस :-आषाढ़ कृष्ण अष्टमी
महा समाधि स्थल :- तारापीठ महा-शमशान में विद्यमान पञ्च मुंडी आसन
स्थानीय कैलेंडर :- बंगला सन १३१८, २ श्रवण

कहते हैं कि कमल सदैव कीचड में ही खिलता और और पुष्पराज बनता है उसी तरह भक्ति भी सदा अभाव और गरीबी की कोख से ही जन्म लेती है ।

क्योंकि बहुधा यदि कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो अमीरी और ज्यादा धन और विलासिता की आवश्यकता को जन्म देती है जबकि गरीबी का एक महाप्रबल और सुदृढ़ हथियार ईश्वर की भक्ति ही बन जाती है । 

अब तक के प्रसंगों और अध्ययन तथा मेरे अनुभव तो यही कहते हैं बाकि सत्य क्या है यह माँ जाने -!


दूसरा एक और जो मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव रहा है वह यही रहा है कि भक्ति एक ऐसा पौधा है जिसके बीज बहुत पहले ही इष्ट द्वारा स्वयं बोये गए होते हैं । 

अन्यथा किसी भी जीव में इतनी क्षमता तो बिलकुल भी नहीं है कि वह अपनी इच्छा से भक्ति मार्ग और किसकी भक्ति करेगा इसका चयन कर सके -!


जैसा कि लगभग सभी लोग एकमत से मेरी इस बात से सहमत होंगे कि बंगाल की भूमि भक्ति-तंत्र एवं साधनाओं के सम्बन्ध में आदिकाल से ही बहुत उर्वर रही है । 

उस भूमि का एक-एक कण वंदना के योग्य है - उस धरती ने दो ऐसे भक्त सम्राटों को भी जन्म दिया है ।

जिनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है -!

उनके नाम का उल्लेख होते ही प्रायः हर साधक के शरीर में उत्तेजना और एक अजीब सी ऊर्जा का संचार होने लग जाता है - उन्ही में एक भक्त शिरोमणि का नाम था बामाचरण चट्टोपाध्याय । 

जो आगे चलकर बामा खेपा / क्षेपा के नाम से मशहूर हुए - खेपा / क्षेपा बंगाल का एक स्थानीय शब्द है - जिसका अर्थ होता है पागल। 

 यह नामकरण बामदेव से पहले उनके पिता सर्वानंद जी को भी वहां के लोग दे चुके थे और उन्हें भी सर्वा खेपा कहकर बुलाते थे। क्योंकि बामदेव के पिता भी माँ तारा की भक्ति में तन्मय होकर गाते रहते थे। 


जैसा कि प्रायः बहुत से लेख आदि इस सम्बन्ध में पढ़े मैंने - उन लेखों में वास्तविकता के सिवा अपने पंथ को नए आयाम और महत्व दिलवाने के लिए प्रायः बहुत से लोग यह सत्यापित करने में ज्यादा रूचि दिखाते हैं कि फलां महापुरुष उसी मार्ग के भक्त थे जिस मार्ग के अनुयायी वो स्वयं हैं।


लेकिन मेरा अपना मत ये है कि जो भी साधक या भक्त भक्ति और साधना के आकाश में पूरी चमक के साथ विद्यमान हैं आज भी यदि ईमानदारी से उस पर दृष्टिपात किया जाये तो ज्ञात होगा कि वे किसी मार्ग के साधक नहीं थे ।

 बल्कि निश्छल प्रेम और और अद्भुत समर्पण ने ही उनका पथ प्रशस्त किया इसके बाद वे अपने इष्ट की प्रेरणा से आगे चलते रहे और अंत में इष्ट से ही एकाकार हो गए। 


उन्होंने किसी पंथ या मार्ग का चयन नहीं किया बल्कि सारे पंथ उनके मार्ग में ही पड़े और उनमे से किसी एक पर इष्टादेश या गुरु आदेश से चल पड़े ।

कहने का अभिप्राय यह कि बामदेव / बामाचरण जी ने उम्र के जिस हिस्से से माँ तारा की भक्ति और सेवा को अपना लिया था उस उम्र में तो किसी व्यक्ति को अपने माता - पिता का नाम और कुल - गोत्र भी ज्ञात नहीं होता तो फिर वह किसी मार्ग या पंथ का अनुगामी होगा। 

ऐसा विचार नितांत मूर्खतापूर्ण ही कहा जा सकता है। 


कहा जाता है कि बामा पर भक्ति कि धार उनके स्वयं के माता-पिता को भक्ति में रमा हुआ देखकर ही लगी थी - लेकिन मेरा मत इस तर्क को भी खंडित करता है क्योंकि भक्त का पुत्र भक्त और वैद्य का पुत्र वैद्य होगा यह आज तक सार्वभौमिक सत्य नहीं बन सका है।


अस्तु नियति सदैव ही संयोगों का निर्माण करती है यह कथन शाश्वत है - माँ तारा की कृपा से ही उनके पुत्र बामदेव का जन्म हुआ इसी वजह से वैसा वातावरण मिला।

जहाँ पूर्व से ही ताराभक्ति की ज्योति जगमगा रही थी जिससे इस भक्ति को पुष्पित और पल्लवित होने का आधार मिल गया। 



वैसे भी बामदेव की माता अपनी प्रथम संतान पुत्री के रूप में पाकर कुछ असहज महसूस कर रही थीं एवं उन्होंने इसके लिए या अगली संतान पुत्र हो इस आकांक्षा से माँ तारा के समक्ष धरना दिया था और उसके पश्चात गर्भवती हुईं और उन्होंने भक्त शिरोमणि बामदेव को जन्म दिया - जन्म के बाद से ही बामदेव की दिशा माँ तारा की तरफ ही मुड़ी हुयी हुयी थी।


पांच वर्ष की आयु में ही बालक बामदेव ने माँ तारा की एक अति सुंदर मृतिका मूर्ति का निर्माण कर डाला - सारे अवयव उपलब्ध थे । 

अतः वस्त्र एवं श्रृंगार आदि सब कुछ बड़ी तन्मयता के साथ किया बीच-बीच में वह मूर्ति की सुंदरता एवं लावण्यता को निहार-निहार आनंदित भी हो रहे थे - दीन-दुनिया की क्या खबर ? एक पुत्र अपनी माँ में लीन था और माँ भी अपने पुत्र के स्पर्श को पा पाकर प्रफुल्लित हुयी जा रही थी।

सारा श्रंगार हो गया। वस्त्राभूषण पहना दिए। अब पुत्र तैयार था अपनी माँ के विग्रह के पूर्ण दरश के लिए और जैसे ही चरणों से नजर घूमते हुए सर तक पहुंची - बाल मन तड़प उठा - माँ के लिए सब तो बन गया लेकिन केश ?

केश नहीं बने। अब केश कहाँ से लाऊँ ?


बहुत सोचा


कोई उपाय नहीं दिखा


तब सूझी एक बात बालमन में


कहीं और क्यों ढूँढूँ ?


मेरे केश तो हैं ना


और बस खुद के बाल नोच डाले


लेकिन माँ तारा की मूर्ति पूरी कर दी


जब माता पिता ने यह कृत्य देखा तो एक बार तो कलेजा हिल गया लेकिन फिर मन भी प्रफुल्लित हो गया तारा प्रेम की यह स्थिति देखकर।

आह तारा

जय तारा

माँ तारा।

कितने निराले हैं तेरे खेल वो जगतजननी - कोई दिन-रात भजे फिर भी ना मिले - किसी के संग हर कदम-हर राह चले ! तेरी हर रजा है अनूठी इस जगत में - तेरे हर लम्हात के के सिलसिले भी भले !!

दिन गुजरते रहे बालमन रमा रहा तो बस रमा ही रहा !

पास में ही स्थित जावाफूल के फूलों को लेकर बामा माँ को चढ़ाते और माँ की अर्चना करते थे।

( जिसे कहीं कहीं पर गुड़हल के नाम से भी जाना जाता है जिसका बनस्पतिक नाम हिबिस्कुस hibiscus है 

लिपिस्टिक फ्लावर

चाइना रोज

shoeback प्लांट

किनरोज़

औटे इत्यादि नामों से भी जाना जाता है

बामदेव के घर में ही एक जामुन का पेड़ था

जिसके फल तोड़कर वो माँ को भोग लगाते थे

लेकिन माँ कभी नहीं खाती थी

बामा बोलते " ले माँ तू खा ले इसके बाद ही मैं खाऊंगा "

और जब माँ नहीं खाती तो बाल सुलभ गुणों से बामा रो देते

जामुन के फल वैसे ही रखे रहते एक दिन बामा के पिता ने यह द्रश्य देखा तो उनकी आँखों में यह बाल भक्ति देखकर आंसू आ गए -!

बामा ने पिता को देखा तो पिता के पास आ गए और पूछने लगे

" बाबा माँ कौन से फल खाती है" ?

" आप तो कहते हैं की माँ अपने बच्चों की दी हुयी चीजें ग्रहण करती है" -

और आप कई तरह के फलों को लेकर माँ की पूजा करते हैं

मुझे भी बताइये ना कि कौन से फल दूँ मैं ?

माँ को जिन्हे वह खाए - वह तो नहीं आती मेरे फल खाने और ना मुझसे बात ही करती है " -!

पिता ने समझाया

" बेटा माँ अपने बच्चों को खिलाये बिना नहीं खाती - जैसे तुम्हारी माँ तुम्हे खिलाये बिना खाना नहीं खाती - उसी तरह यह पूरी दुनिया की माँ है - अगर इनका एक भी बच्चा भूखा है तो ये खाना नहीं खाती हैं "

बामा ने फिर पूछा " लेकिन यह तो मुझसे बात भी नहीं करती हैं " -!

तब फिर पिता ने जवाब दिया " बेटा इनसे बात करने के लिए बहुत तपस्या करनी पड़ती है " -!

यह सुनकर बामा अपनी जन्मदात्री माँ के पास भागे-भागे पहुंचे की शायद माँ ही कोई जतन बता दे तारा माँ से बात करने का !

माँ के पास पहुंचकर बामा ने बाल सुलभ चंचलता से माँ की खुशामद करके कहा

" माँ तुम मेरी बात करवा दो ना तारा माँ से "

माँ भला क्या जवाब देती ?
बस बामा को गोद में उठाया और जाकर घर के मंदिर में माँ तारा के सामने बैठ गयीं -!

इसी तरह से दिन बीतते रहे और बामा खेपा की उम्र ग्यारह वर्ष की हुयी तथा उनके छोटे भाई रामचरण की उम्र ५ साल की हो गयी -!

समय की तो अपनी ही गति होती है वह भला कभी किसी के लिए ठहरा है क्या ?

या कभी उसने किसी की परवाह की है क्या ?

और भला करे भी क्यों ?

यदि वह किसी के लिए ठहरा या उसने किसी की परवाह की तो फिर उसकी अहमियत क्या ?

फिर संयोगों की हस्ती क्या ?

बस इसी वजह से दुनिया अपनी अपनी मंथर से चलती रहती है और होनी होती रहती है।

अब समय आ रहा था जब बाबा को अपने वास्तविक पथ पर चलना था।

इसी समय काल में बामा के पिता का स्वास्थ्य ख़राब हुआ और वे अपनी जुबान और हृदय में माँ तारा का नाम बसाये हुए इस दुनिया से रवाना हो गए।

पिता के दाह-संस्कार के समय बामा ने शमशान में माँ तारा विग्रह के प्रथम बार दर्शन प्राप्त किये -!

पहली मार गरीबी की दूसरी मार घर के मुखिया का ना होना बामा की माँ को भीख मांगने की दहलीज में ले गया।

किसी तरह करके श्राद्ध कर्म पूरा हुआ।

बहनोई की मृत्यु का समाचार पा बामा के मामा जी आये और दोनों बच्चों को अपने साथ ले गए -!

बामा चरण गाय चराने ले जाने का काम दिया गया और उनके छोटे भाई को गायों के लिए घास
काटने का काम मिला।

जिसके बदले में दोनों भाइयों को आधा पेट झूठा भात खाने को दिया जाता था -!

एक बार बामा चरण को एक बड़ी से टोकरी ले कर गोबर उठाने और छोटे भाई को घास काटने के लिए उनके मामा ने कहा।

राम चरण की असावधानी के कारण बामा चरण की ऊँगली कट गई।

और राम चरण भाई भाई कह कर रोने लगे।

उसी समय इनकी गाय ने बगल के खेत में खड़ी फसल का काम तमाम कर दिया।

उस खेत के मालिक ने मामा से शिकायत कर दी - मामा ने छड़ी से बामा की खूब पिटाई की जिससे बामा का हृदय बहुत आहत हुआ और इस बात ने बामा का मन मामा की तरफ से उचाट कर दिया। 

बालमन जितना सहनशील होता है उतना ही बागी भी और बालमन में यदि कोई बात घर कर जाए तो फिर पुरे जीवन काल में वह बात पत्थर की लकीर की तरह हो जाती है।

बामा भाग कर अपनी माँ के पास आतला ग्राम वापस लौट आए।

इसी बीच राम चरण को एक साधू अपने साथ गाना सिखाने ले गए।

इसके बाद से बामा ने शमशान में रहने का निर्णय लिया।

इसी क्रम में कुछ दिन बाद वो पूर्णमासी की रात थी।

श्मशान में कई लोग बैठे थे और सब अपने-अपने राग में मस्त थे, कुछ आराम कर रहे थे और कुछ सुल्फे-गांजे का आनंद ले रहे थे।

क्रमशः आगे का वृत्तांत भाग २ में देखें 

माता महाकाली शरणम्




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