बामा खेपा या बामाचरण चट्टोपाध्याय भाग - २
बामा खेपा या बामाचरण चट्टोपाध्याय
उपरोक्त नाम रखने का कारण :- चूँकि माँ तारा का एक नाम बामा भी है और माँ तारा के मंदिर में इनकी माता के धरना देने के बाद ही इनका जन्म हुआ था।
दूसरा कारण यह भी है कि कि शिवरात्रि की रात में चारों पहरों के नाम शिव जी अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं यथा :
- गंगानाथ
- अधराय
- बामदेव
- सद्योजात
प्रसिद्द नाम :- माँ तारा के पुत्र रूप में ख्याति प्राप्त
बामा खेपा / क्षेपा।
जन्म :- 5 मार्च 1837,
जन्म दिवस :- शिव रात्रि या शिव चतुर्दशी,
जन्म स्थल :- भारत के पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले की रामपुरहाट उप-डिवीजन के आटला गांव
स्थानीय जन्म कैलेंडर :- बंगला सन १२८८, १२ फाल्गुन, शिव रात्रि की रात्रि का तृतीय प्रहर
पिता का नाम :- सर्वानंद चट्टोपाध्याय
इष्ट :- माँ तारा
इष्ट सम्बोधन :- बड़ी माँ
गुरु :- योगी कैलाशपति
साधना स्थल :- तारापीठ महाश्मशान
पिता का व्यवसाय :- स्थानीय संगीत विधा (श्यामा संगीत गायक )
आर्थिक स्थिति :- दयनीय
जन्मदात्री माता :- भुवनेश्वरी देवी
भाई - बहन :-
जय काली
- बामाचरण
- दुर्गा
- द्रवमयी
- सुंदरी
- रामचरण
मृत्यु या महा समाधि :- 22 जून 1911,
महा समाधि दिवस :-आषाढ़ कृष्ण अष्टमी,
महा समाधि स्थल :- तारापीठ महा-शमशान में विद्यमान पञ्च मुंडी आसन
स्थानीय कैलेंडर :- बंगला सन १३१८, २ श्रवण
वहीँ रहने वाले साधकों के (मोक्षानंद बाबा, गोसाईं बाबा) पैर दबाते दबाते बामा को नींद आ गयी !
वहीँ रहने वाले साधकों के (मोक्षानंद बाबा, गोसाईं बाबा) पैर दबाते दबाते बामा को नींद आ गयी !
उसी बीच शमशान में एक बैरागी साधक गांजा पी रहे थे और गांजा पीकर अनजाने में उन्होंने उसकी राख को वहीँ एक जगह फेंक दिया।
लेकिन उस राख में आग बाकी थी जिससे सुलगते - सुलगते वह आग तेज हुयी और हवा के झोंके से वह आग एक झोपडी में लग गई और देखते देखते सारे गाँव को झुलसा गयी।
गाँव वालों को यह लगा कि यह बामा की गलती है - और गाँव वाले उन्हें खोजने लगे।
उनके डर से बामा भक्त प्रहलाद की कहानी याद करते हुए खुद ही आग में कूद गए - कि गांव वालों की मार खाने से बढ़िया है की इसी आग में कूदकर अपने प्राण दे दिए जाएँ - साथ ही चिल्लाते भी रहे की मैंने आग नही लगायी है।
धीरे धीरे पूरा गाँव आग में झुलस गया लेकिन बामा आग से सकुशल निकल आए - और दौड़ते हुए अपनी माँ के पास अपने गाँव पहुँच गए -!
आर्थिक स्थिति पहले से ही ख़राब थी ना खाने का भरोसा ना जीवन का ऐसे में बामा की माँ ने उन्हें बहुत खरी खोटी सुनायी और इस बात ने बामा के हृदय को इतना आघात पहुँचाया की बामा ने घर छोड़ दिया।
उसके बाद फिर कभी लौटकर घर नहीं गए और तारापीठ के महाश्मशान में शरण ली -!
इस समय से ही बामा की वास्तविक साधनात्मक जीवन की शुरुवात होती है।
प्रतिदिन बामा जीवन कुण्ड में स्नान करते संतों के लिए गांजा इकठ्ठा करते और माता की साधना करते थे - उन्ही दिनों सेमल वृक्ष के नीचे बाबा कैलाशपति का आगमन निर्धारित हुआ।
जिसका कि बामा को बहुत बेसब्री से इन्तजार था - क्योंकि बाबा के कुछ कार्य उन्हें बहुत अच्छे लगते थे जैसे की खड़ाऊं पहनकर बिना पानी में डूबे नदी पार कर जाना और मुरझाये हुए तुलसी वृक्ष को हरा-भरा बना देना इत्यादि -!
एक बार रात्रि काल में बाबा ने बामा को गांजा तैयार करने के लिए बुलाया उस रात बामा जी को बहुत अजीब-अजीब से अनुभव हुए और बहुत डर लगा।
अनगिनत दैत्याकार आकृतियां बामा के आस-पास विचरने लगीं और यह सब बामा से बर्दाश्त नहीं हो पाया और वह बेहोश हो गए -!
जब पुनः उन्हें होश आया तब वे आकृतियां " जय गुरु जय तारा " कहकर अंतर्ध्यान हुयीं - और तब कहीं जाकर बामा ने गुरु को गांजा दिया -!
काली पूजा की रात में वामा का अभिषेक कैलाशपति बाबा द्वारा किया गया - सिद्ध मंत्र पा कर वामा खेपा बिल्कुल ही अलग-थलग हो गए।
वह हमेशा शीमल वृक्ष के नीचे बैठ कर जाप किया करते।
उनके आस-पास हमेशा अजीब अजीब आवाजें बिन बादल गर्जन होना - मरे बच्चो की कूदफांद - कान के पास गरम साँस का महसूस होना जैसी घटनाये होती रहती थीं जो बामा को और चंचल कर देती थी।
शिव चतुर्दशी के दिन गुरुदेव का आदेश पा कर बामा फ़िर अपने आसन पर बैठे और सिद्ध बीज मंत्र का जाप शुरू किया - सुबह से शाम हो गई पर बामा तब भी तन्मय हो कर देवी माँ तारा के ध्यान में लगे रहे।
रात बढ़ने लगी और घोर अन्धकार हो गया - वातावरण पूरा शांत था - रात में २ बजे के बाद वामा का शरीर कापने लगा और पूरा शमशान फूलो की महक से सुगन्धित हो उठा।
अचानक आकाश से नीले प्रकाश की ज्योति फुट पड़ी - चारो तरफ़ प्रकाश ही प्रकाश हो गया और प्रकाश के बीचों बीच तारा माँ ने बामा खेपा को दर्शन दिए -!
उस भव्य और सुंदर विग्रह को देख कर आनंद में बामा सब कुछ भूल गए।
इतनी कम उम्र में बामा को माँ का दर्शन होना सिर्फ़ भक्ति और विश्वास के कारण था - सबने शमशान में प्रकाश देखा पर माँ के दर्शन तो सिर्फ़ बामा खेपा को ही हुए।
तब से बामा देव जगत में पूज्य हो गए - तारापीठ के महंत मोक्षानंद पहले से ही बामा की महानता को जानते थे इसलिए ही उन्होंने बामा को अपना शिष्य बनाया था।
मोक्षानंद के मरने के बाद १८ वर्ष की उम्र में ही वामा चरण को तारापीठ का पीठाधीश बना दिया गया -!
माता महाकाली शरणम्
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