Wednesday, 3 February 2016

स्वामी रामकृष्ण परमहंस परिचय एवं जीवन वृत्त महागाथा ( An Introduction of Swami Ramkrishna Paramhans and his life events epic)

स्वामी रामकृष्ण परमहंस परिचय एवं जीवन वृत्त महागाथा - 1




भी गुरुजनों एवं प्रथम पूज्य गणपति जी को प्रणाम करते हुए अपने इस महालेख को अपनी जननी एवं सर्वस्व माता महाकाली के चरणों में भेंट करता हूँ और आशा करता हूँ कि उसकी प्रेरणा एवं शक्ति से अपनी इस लेखनी को पूरा कर पाउँगा ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार की लेखन छवि अपने मानस में बना रखी है - आगे माँ जैसा चाहेगी वैसा ही होगा।

यह भारत-भूमि तरह-तरह के रहस्यों और अवतारों से भरी पड़ी है जिसमे कभी राम आये तो कभी कृष्ण आये - यह भारत भूमि भक्त और भगवान की क्रीड़ा स्थली रही है हमेशा से ही -!

इसी धरती में भक्त शिरोमणि श्री रामकृष्ण परमहंस का भी जन्म और उस जन्म की घटना ने बंगाल को सदा-सर्वदा के इस धरती का सिरमौर बना दिया - आज तक अगर किसी भी हृदय में भक्ति भावना है और उसके समक्ष ठाकुर की चर्चा आरम्भ हो तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि इष्ट के प्रेम में सर्वस्व न्योछावर करने की चाह ना जाग उठे - आँखे ना भर आएं - रोंगटे ना खड़े हो जाएँ -!

मैंने तो अपने अब तक के जीवन काल में नहीं देखा इसके अतिरिक्त जिसके सामने भी मैंने कथा कही ठाकुर की - जहाँ भी सन्दर्भ दिया ठाकुर वहीँ भक्ति के ज्वालामुखी फूटे -!

बहुत दिनों से इस प्रकार के किसी लेख के बारे में सोच रहा था जो भक्ति जगत में लहरा उठे - हालांकि विषय नया नहीं है मुझसे पहले भी बहुत से लोग और लेखक इस विषय पर अति महत्वपूर्ण लेख और पुस्तकें लिख चुके हैं जिनके सामने इस लेख का कोई अस्तित्व ना हो शायद किन्तु यह उद्देश्य अस्तित्व का है भी नहीं - यह तो बस उद्दीपन लेख है जो आग जला दे बस - एक नशा सवार करवा दे - जिसके बिना फिर कहीं चैन ना मिले -!

ठाकुर के विषय पर बहुत सी पुस्तकें उपलब्ध हैं - जिनमे तरह-तरह से उनसे सम्बंधित तथ्य और जानकारियां उपलब्ध हैं लेकिन हमारे मित्रों और आज के समाज की निर्भरता अंतर्जाल पर इतनी बढ़ गयी है कि पुस्तक आदि पढ़ने का समय ही निकल नहीं पाता - ऐसे में बहुत से मित्र सारी चीजें इंटरनेट पर ढूंढने का प्रयास करते हैं - लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जो आज भी इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि कहीं कॉपी राइट का मामला है तो कहीं मेहनत करने का जिसकी वजह से लोग लिख नहीं पाते -!

इसी वजह से इस प्रकार के लेखों की सुलभता भी नहीं हो सकी क्योंकि जब कहीं नहीं तो बेचारे कॉपी कैट भी असहाय हो गए -!

बहरहाल जो भी एक प्रयास मैं करना चाहता हूँ आप सबके बीच हो सकता है यह सार्थक रहे या फिर निरर्थक भी लेकिन इससे क्या ? मेरा धर्म है लिखना और धर्म का प्रचार-प्रसार करना और आप लोगों का धर्म उससे अपनी सारवस्तु ग्रहण करना -!

हम सब अपना धर्म पालेंगे -!

चूँकि ऊपर की चंद लाइन पढ़कर ही समझ में आ जाता है कि यह लेख स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी पर आधारित है जिन्हे मैं अपना मानसिक गुरु भी मानता हूँ। अस्तु इसमें मैं उनसे सम्बंधित कुछ प्राथमिक सूचनाएं दूंगा जो विभिन्न श्रोतों द्वारा (श्रवण-पठन-भ्रमण) आदि के द्वारा मुझे ज्ञात हुईं हैं। इस लेख को लिखने का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति पर कोई दबाव बनाना या किसी प्रकार के सिद्धांत का प्रतिपादन अथवा इष्ट निर्धारण आदि बिलकुल भी नहीं है।

इसका एकमात्र उद्देश्य है कि किस प्रकार से समर्पण एवं भक्ति पूर्वक तथा विश्वास से उन ऊंचाइयों को भी प्राप्त किया जा सकता है जिनके बारे में सोचकर भी लोगों डर लगता है - एक बहुत ही अनुभूत तथ्य कह रहा हूँ जो अब तक के अपने जीवन में अनुभव किया है मैंने :

"वे सभी लोग जो स्वयं को नास्तिक कहते हैं वे वास्तव में नास्तिक नहीं होते बल्कि वे अकर्मण्य होते हैं प्रयास करना उनके वश का नहीं होता"

बहरहाल अब हम अपने मूल विषय पर आते हैं और उपलब्ध जानकारियों के एकत्रीकरण द्वारा ठाकुर के विषय में प्राथमिक जानकारियों का प्रस्तुतीकरण करते हैं :

परिवार एवं आर्थिक स्थिति :

बंगाल के हुगली जिले के देरे गांव में एक बहुत ही कुलीन-मध्यमवर्गीय कर्मकांडी परिवार निवास करता था जिसके मुखिया का नाम माणिक राम चट्टोपाध्याय था - सारे आस पास के क्षेत्र में बहुत सम्मान था इस परिवार का इनके कुल में परंपरागत रूप से श्रीरामचन्द्र जी की ही पूजा अर्चना होती थी अर्थात कुलिष्ट श्री रामचन्द्र जी थे।

माणिक राम को तीन पुत्र रत्न एवं एक कन्या की प्राप्ति हुयी जिनके नाम क्रमशः :
  1. खुदीराम बोस
  2. रामशीला
  3. निधिराम
  4. कनाई राम
जैसा कि तत्कालीन समाज में बाल विवाह का प्रचलन था अस्तु उसी क्रम में खुदीराम जी का भी विवाह संपन्न हुआ किन्तु प्रथम पत्नी का स्वर्गवास हुआ तो उनका द्वितीय विवाह साराटी मायापुर की चंद्रमणि जी से हुआ उनके दूसरे विवाह से पूर्व ही उनके पिता का स्वर्गवास हो चुका था अस्तु सम्प्पूर्ण परिवार के भरण-पोषण का दायित्व अब खुदीराम जी का ही था - !

पूरा परिवार पूर्ण कर्म-कांडी और तत्कालीन समाज के हिसाब से कट्टरवादी विचारों का था। इसी वजह से आस पास के गावों तक में उनका बहुत सम्मान था -!

उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर जिस समय खुदीराम जी का दूसरा विवाह संपन्न हुआ उस समय खुदीराम जी की उम्र २४ एवं चंद्रमणि देवी की उम्र 8 बरस की थी।

विवाह के ५ या ६ वर्षोपरांत १८०५ में बड़े पुत्र श्री रामकुमार जी का जन्म हुआ उसके ५ वर्ष उपरांत १८१० में पुत्री कात्यायनी का जन्म हुआ एवं लगभग १६ वर्ष उपरांत १८२६ में रामेश्वर का जन्म हुआ।

माता महाकाली शरणम्


क्रमशः ................

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