Wednesday, 20 August 2014

गायत्री मन्त्र श्रंखला - भूमिका 




मन्त्र :-

१. मन्त्र क्या हैं ?


सबसे पहला सवाल तो यही उठता है जनमानस के मष्तिष्क में - जिसका साधारण सा जवाब है कुछ लयबद्ध शब्द या शब्दों का समूह जिनके निरंतर उच्चारण से एक निश्चित दैवी शक्ति का प्रादुर्भाव होता है मन्त्र कहलाते हैं ।


२. मन्त्र काम कैसे करते हैं ?


इसका जवाब हालाँकि ऊपर वाले उत्तर में ही सन्निहित है - भौतिक जगत के एक साधारण से उदाहरण से इस बहुत भली भांति समझा जा सकता है - जैसे एक विद्युत पंखे का जब स्विच ऑन किया जाता तो उसकी पंखुरियाँ एक निश्चित आवृत्ति में घूमने लग जाती हैं और एक निश्चित गति और निश्चित दबाव से हवा को लक्ष्य की ओर प्रक्षेपित करने लग जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप हमे बंद कमरे में भी हवा का आनंद प्राप्त होता है - अब इसमें यह नहीं कहा जा सकता की हवा उपलब्ध ना होते हुए भी हवा उत्पन्न हुयी - हवा विद्यमान थी लेकिन उसे एक निश्चित दिशा और गति विद्युत पंखे ने दी -! ठीक इसी प्रकार दैवी शक्तियां इस ब्रह्माण्ड के कण-कण में विद्यमान हैं जरुरत है उन्हें एक निश्चित गति से लक्ष्य की तरफ आकर्षित करके आनंदलाभ लेने का - जब हम निरंतर मन्त्र जप करने लगते हैं तब दैवी शक्तियां हमारी तरफ आकर्षित होकर हमारे चारों तरफ एक वातावरण निर्मित करने लग जाती हैं -!


३. मन्त्रों की भाषा गूढ़ एवं संस्कृत में क्यों है ?


चूँकि सभी मन्त्रों का प्रादुर्भाव आर्ययुगीन सभ्यता में हुआ और उसी समय देवत्व के सिद्धांत भी प्रतिपादित हुए साथ ही आर्यों की भाषा भी संस्कृत ही थी अस्तु सभी मन्त्र-वेद ऋचाएं-स्तुतियाँ उनकी भाषा में ही रची गयीं इसी वजह से मन्त्र संस्कृत भाषा में हैं ।


मन्त्रों की भाषा वास्तव में गूढ़ नहीं है - यह हमारी अपनी प्रचलित भाषा से भिन्न है - जैसे कि यदि हम किसी देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करते हैं तो वह क्षेत्रीय भाषा हमे सरल और उपयोगी प्रतीत होती है लेकिन वहीँ दूसरे क्षेत्र की भाषा हमे गूढ़ या कठिन प्रतीत होती है अतएव स्पष्ट है की मन्त्रों की भाषा गूढ़ नहीं अपितु हमारी अल्पग्यता इन्हे हमारे लिए गूढ़ बना देती है ।


४. मन्त्रों में निश्चित आवृत्ति का क्या अर्थ है ?


मन्त्रों में निश्चित आवृत्ति का अर्थ बहुत साधारण भी है और बहुत क्लिष्ट भी - साधारणतया इसे इस प्रकार समझा जा सकता है - जैसे यदि आपका लक्ष्य व्यक्ति आपसे १०० मीटर की दुरी पर स्थित है और आपसे कहा जाये कि आप उसे अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए उसे आवाज दो - आपको पता है की आपकी आवाज को प्रक्षेपित करने की सामर्थ्य मात्र १० मीटर है तो इस स्थिति में आप क्या करेंगे ? वह लक्ष्य तो कभी आपको सुन नहीं पायेगा - इसके लिए दो ही तरीके होंगे या तो आप अपनी आवाज प्रक्षेपित करने की सामर्थ्य बढ़ाएं या फिर किसी अन्य कृत्रिम विधि का प्रयोग करें - भौतिक जगत में इस दुरी को पूरा करने के लिए टेलीफोन का उपयोग हुआ और आध्यात्मिक जगत में टेलीपैथी या ध्यान पद्धति का - अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करके मंत्रो का एक निश्चित लय और निश्चित संख्या में जाप करना ही आवृत्ति कहलाता है ।


५. मन्त्रों का जाप करने का क्रम या विधान क्या है ?


मन्त्रों का जाप करने के दो विधान होते हैं :-

अ. मानसिक जाप - जिन मन्त्रों का जाप मानसिक रूप से किया जाये
ब. उपांशु जाप - ऐसे मन्त्र जिनके जाप में होंठ हिलते हुए दिखें किन्तु आवाज बाहर सुनाई ना दे
स. वाचक जाप - ऐसे मन्त्र जो जोरदार आवाज से पढ़े जाएँ

मानसिक जाप में मन्त्रों का जाप मन ही मन किया जाता है इस प्रकार के जाप में स्थान-काल का कोई भेद नहीं होता शुचिता-अशुचिता का भी भेद वांछनीय नहीं है ।

उच्चरित जाप में सभी मानदंड अपेक्षित होते हैं जैसे कि - स्वच्छता - सत्यभाषण - विनियोग -पुश्चरण - जप क्रम - जप संख्या अनुसरण - माला एवं अन्य विहित विधान ।

गायत्री का अर्थ :- गायत्री का भाव निहित अर्थ है तेजपुंज / तेजोमय - सामान्य तौर पर गायत्री मन्त्र का यदि अर्थ और सम्बन्ध देखा जाये तो जो ज्ञात होता है वह यह की - गायत्री मन्त्र सूर्यदेव के सविता रूप का प्रतिनिधित्व करता है - जो परम तेजपूर्ण एवं देव-देवी शक्तिओं को भी प्रेरित करने वाला है - इस मन्त्र या साधना का वास्तविक उद्देश्य ही है कि इस झूठे जगत व्यवहार या मायारूपी जगत के अंधकार से परम तेजोमय संसार की ओर जाने का रास्ता मिले हमे - ठीक इसी प्रकार विभिन्न देवी देवताओं के गायत्री मन्त्र भी हैं - जो की सामान्य मन्त्रों से हजारों गुना अधिक प्रभाव प्रदान करने वाले होते हैं - हर बार एक ही बात कहूँगा मैं कि पवित्रता - भावनात्मक जुड़ाव और समर्पण मृत मन्त्र को भी आपके लिए जीवंत बना देता है लेकिन ज्वलंत मन्त्र भी कई बार राख से ज्यादा नहीं होते -!

गायत्री मन्त्र :-

गायत्री मंत्र:- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

गायत्री मंत्र का अर्थ :- सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।

धार्मिक दृष्टि से वेदमाता गायत्री आदिशक्ति है। ज्ञान शक्ति रूप माता गायत्री का स्मरण सांसारिक जीवन की हर परेशानियों से बाहर आने और मनोरथ पूरे करने के लक्ष्य से बहुत महत्व रखता है। यही कारण है कि गायत्री के ध्यान और उपासना के लिए गायत्री मंत्र का जप बहुत ही प्रभावी माना गया है। मंत्र, श्लोक या स्त्रोत के जप का शुभ फल तभी संभव है, जब उनके लिए नियत समय, नियम और मर्यादा का पालन किया जाए। गायत्री मंत्र जप के लिए भी ऐसा ही निश्चित समय और नियम शास्त्रों में नियत हैं।
गायत्री मंत्र जप और संध्या का महत्व सूर्योदय से पहले है। इसलिए सूर्य उदय होने से पहले उठकर जब तक आसमान में तारे दिखाई दे, संध्याकर्म के साथ गायत्री मंत्र का जप करें।

इसी तरह शाम के समय सूर्य अस्त होने से पहले संध्या कर्म और गायत्री मंत्र का जप शुरू करें और तारे दिखाई देने तक करें।

धार्मिक दृष्टि से सुबह के समय खड़े होकर किया गया संध्याकर्म और गायत्री जप रात के पाप और दोषों को दूर करते हैं।

वहीं शाम को बैठकर किया गया संध्या कर्म और गायत्री जप दिन में हुए दोष और पाप नष्ट करते हैं।

यथासंभव गायत्री मंत्र का जप किसी नदी या तीर्थ के किनारे, घर के बाहर एकान्त जगह या शांत वन में बहुत प्रभावी होता है।




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