स्वामी रामकृष्ण परमहंस परिचय एवं जीवन वृत्त महागाथा - 3
खुदीराम जी का अपने भांजे रामचाँद से बहुत लगाव था यदि उन्हें किसी वजह से हाल समाचार ना मिले तो वे तुरंत उसकी खैर-खबर लेने मेदिनीपुर चले जाते थे।
इसी प्रकार एक बार बहुत दिनों तक कोई हाल-खबर ना मिलने पर वे मेदिनीपुर जाने को तत्पर हुए किन्तु रास्ते में एक जगह हरे-भरे बेल पत्रों के पेड़ देखे जिनमे नए पत्ते निकले - फाल्गुन के महीने में पत्तों के झड़ जाने की वजह से बेल पत्र मिलने मुश्किल से हो जाते थे -अस्तु वे पास के गांव से एक टोकरी और अंगौछा खरीद कर पूरी टोकरी भर कर बेल पत्र तोड़कर घर आ गए - घर आकर स्नानादि कर आनंद और भक्ति भाव से पूजन आदि कर जब भोजन के लिए बैठे तब अवसर पाकर चंद्रा देवी ने पूछा "आप तो मेदिनीपुर जाने को कह कर गए थे - फिर वहां नहीं गए "?
तब भी आश्चर्य हुआ कि - देव पूजा का साधन देख वे मेदिनीपुर जाने की बात भूल ही गए।
अगले दिन वे पुनः मेदिनीपुर के लिए रवाना हुए।
देरे गांव छोड़े हुए उन्हें लगभग छः बरस हो चुके थे और अब तक पुत्र की उम्र १५ बरस और पुत्री कात्यायनी १० बरस की हो चुकी थीं और तब के सामाजिक पर्यावरण और मान्यताओं के हिसाब से यह उम्र विवाह योग्य हो गयी थी।
तब आनुङ गांव के केनाराम बंदोपाध्याय से कात्यायनी का विवाह किया और केनाराम जी की बहन से रामकुमार का विवाह सम्पन्न किया।
विवाह के समय रामकुमार व्याकरण और साहित्यशास्त्र का अध्ययन कार्य कर रहे थे। आगामी तीन या चार वर्षोपरांत रामकुमार का अध्ययन कार्य पूरा हुआ और अब वे भी द्रव्योपार्जन करने में समर्थ हुए।
परिवार की आर्थिक स्थिति अब बहुत बेहतर हो चली थी अस्तु खुदीराम जी अपना अधिकाधिक समय ईश आराधना में व्यतीत करने लगे।
खुदीराम जी की इच्छा हुयी कि अब तीर्थ यात्रा की जाए - ऐसा सोचकर वे रामेश्वरम की यात्रा पर चले गए - वहां से बाणलिंग लेकर आये और अपने पूजा स्थल में स्थापित किया।
लगभग डेढ़ या दो बरस के उपरांत उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी जिसके बारे में उनका मानना था कि रामेश्वरम की कृपा से पुत्र उत्पन्न हुआ है इसीलिए उन्होंने उस पुत्र का नाम रामेश्वर रखा।
सात या आठ वर्ष बीत गए अब हालात बहुत बेहतर थे - कहते हैं रामकुमार की जिह्वा पर माँ सरस्वती निवास करती थीं - वे जिसके बारे में जो भी कह देते थे वह हो जाता था - एक बार की बात है :
एक परिवार कहीं से गंगा स्नान करने हेतु पधारा था और रामकुमार भी उसी समय स्नान करने के लिए आये हुए थे - उस स्त्री पर दृष्टि पड़ते ही वे जान गए कि यह कल मर जाएगी और यह बात जब उन्होंने उस औरत के पति को बता दी - तो सब इस बात के लिए उनका परिहास करने लगे - क्योंकि स्त्री पूर्णतया स्वस्थ थी - उसे कोई बीमारी तक ना थी - उस दिन बात आई-गयी हो गयी लेकिन अगले दिन वह स्त्री सचमुच में मर गयी।
तब से सभी लोगों को भरोसा हो गया कि रामकुमार जी की जिव्हा पर सरस्वती वास करती हैं और उनका कहा हुआ कभी झूठ नहीं हो सकता - उन्हें यह भी ज्ञात था कि प्रसव काल में उनकी पत्नी का देहांत हो जायेगा और वैसा ही हुआ।
इसके बाद १८३५ के आस-पास खुदीराम जी को पुनः तीर्थयात्रा की इच्छा हुयी अब उनकी उम्र भी लगभग ६० बरस की हो चुकी थी।
फिर भी उन्होंने इस बार पैदल ही गया तीर्थ जाने का निश्चय किया और गया यात्रा की ।
कुछ जगह (श्री नरहर रामचन्द्र परांजपे कृत "श्रीरामकृष्णलीलामृत") में उद्धृत है कि " ह्रदय का कथन है कि खुदीराम जी अपनी पुत्री कात्यायनी की अस्वस्थता का समाचार सुन जब वहां पहुंचे तो देखते हैं कि कात्यायनी अवसादियों की तरह हाथ-पैर पटकती हैं और उल्टा-सीधा बकती है - यह देख वे समझ जाते हैं कि यह प्रेतग्रस्त हो गयी है - और ऐसे में वे अपने इष्ट का ध्यान कर कहते हैं "तू भूत हो या फिर कोई और - मेरी पुत्री को छोड़ के चला जा " तब उस आत्मा ने कहा "तुम यदि गया जाकर पिंडदान करो तो मुझे मुक्ति मिल जायगी" और इस प्रकार खुदीराम जी गया की यात्रा के लिए चले जाते हैं"
गया यात्रा के दौरान जब वे गया पहुंचे और उन्होंने पिंडदान किया तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे कि सभी पितृ खूब प्रसन्न हैं और उनके द्वारा दिए गए पिंडों को ग्रहण कर रहे हैं ।
रात्रि में जब वे सोये तो उन्हें ऐसा आभास हुआ कि जैसे वे किसी मंदिर में हों और उनके सभी पितृ पूर्वज इत्यादि चारों तरफ उपस्थित हैं एक दिव्य सिंहासन के चारों ओर खूब दिव्य लोग उपस्थित हैं । इसके पश्चात् एक दिव्य प्रकाश से सम्पूर्ण जगह दैदीप्यमान हो गयी एवम् सिंहासन पर विराजमान दिव्य पुरुष की सभी जन स्तुति कर रहे हैं ।
तभी उन्हें प्रतीत हुआ कि उस दिव्य पुरुष ने जिसके अधरों पर सुन्दर मनमोहक सी मुस्कान खेल रही है हँसते हँसते खुदीराम जी को अपने पास बुला रहे हैं । खुदीराम इस आमंत्रण पर मंत्रमुग्ध यंत्रचालित से उस दिव्य पुरुष के सम्मुख पहुँच जाते हैं एवं भाव विभोर हो दंडवत हो नाना विधि स्तुति करने लगते हैं तभी उन्हें उस दिव्य पुरुष की गंभीर आकाश वाणी सी आवाज सुनाई देती है "खुदीराम तुम्हारी भक्ति से मैं बहुत संतुष्ट हूँ - मैं तेरे घर में पुत्र रूप में अवतार लेकर तुम्हारी सेवा ग्रहण करूँगा - तुम यहाँ से जाकर मेरे अवतार लेने की प्रतीक्षा करना"!
क्रमशः ..............................
माता महाकाली शरणम्
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