Friday, 26 August 2016

स्वामी रामकृष्ण परमहंस परिचय एवं जीवन वृत्त महागाथा ( An Introduction of Swami Ramkrishna Paramhans and his life events epic)

स्वामी रामकृष्ण परमहंस परिचय एवं जीवन वृत्त महागाथा - 5






इस अचानक घटित घटना ने धनी को बड़े विस्मय में डाल दिया और भय भी हुआ अस्तु उसने तुरंत दीपक कि बत्ती बढाई जिससे प्रकाश अधिक हो और दृष्टि स्पष्ट हो जब प्रकाश की मात्रा बढ़ गयी तो धनी देखती है कि बालक नाल सहित धान सिझाने वाले चूल्हे के पास पड़ा है और बालक के सम्पूर्ण शरीर पर राख ही राख है .

जल्दी से धनी ने बालक को उठाकर जब पोछा तो देखा कि बालक का रूप अति मनभावन और डील-डौल किसी छः महीने के बालक जैसा है, धनी को फिर आश्चर्य हुआ और उसने पड़ोस कि अन्य महिलाओं को बुलाकर सारा वृत्तांत उन्हें कह सुनाया .

बालक के जन्म के उपरांत खुदीराम जी ने विज्ञ पंडितों से बालक की कुंडली बनवाई (शकाब्द १९५७ (दिनांक १७ फरवरी १८३६) फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि बुधवार को आधी घडी रात्रि शेष) में बालक का जन्म हुआ था जिसके लिए भ्रगु संहिता में उद्धृत पाया जाता है .

धर्म स्थानाधिपे तुंगे धर्मस्थे तुंगखेचरे

गुरुणा दृष्टिसंयोगे लग्नेशे धर्मसंस्थिते

केन्द्रस्थानगते सौम्ये गुरौ चैव तु कोणभे

स्थिरलग्ने यदा जन्म संप्रदायप्रभुर्हि सः

धर्मविन्माननीयस्तु पुण्यकर्मरतः सदा

देवमंदिरवासी च बहुशिष्यसमन्वितः

महापुरुषसंज्ञोअयम नारायणांशसंभवः

सर्वत्र जन्पुज्यश्च भविष्यति न शंसयः

यह सब ज्ञात होने पर खुदीराम जी को अति हर्ष हुआ और उन्हें निश्चित हुआ कि यह पुत्र निश्चय ही गदाधर कि असीम कृपा का परिणाम है अस्तु उन्होंने बालक का नाम गदाधर ही रखा .

यह सर्व विदित है एवं पुराणों में भी उद्धृत है कि जब भी इस धरा पर किसी देवांश या अवतार का आगमन हुआ है तो भरपूर दिव्य अनुभूतियाँ होती हैं और उन्हें यह विदित भी होता है कि यह बालक कोई सामान्य व्यक्ति या आत्मा नहीं किन्तु छलिया माया तदुपरांत भी उन्हें छलने से नहीं चूकती और वह स्मरण-विस्मरण के सागर में गोते लगाते रहते हैं, यही हाल खुदीराम जी का और उनकी धर्मपत्नी का भी था .

जब यह सुचना खुदीराम जी के भांजे रामचाँद जो कि मेदिनीपुर में रहते थे ज्ञात हुआ तो उन्होंने मामा कि निर्धन स्थिति का ख्याल करते हुए एक अति दुधारू प्रकृति कि गाय मामा के घर भिजवा दी जिससे बालक का उचित पालन-पोषण हो सके .

इधर बालक गदाधर ज्यों-ज्यों बड़ा होता जा रहा था उसकी आकर्षण शक्ति का उत्तरोत्तर विकास हो रहा था जिससे मोहल्ले का कोई भी जीव और स्त्रियाँ का प्रिय भाजन बनता जा रहा था .

अब मोहल्ले कि प्रायः सभी स्त्रियाँ किसी ना किसी बहाने से चंद्रा देवी के पुत्र के मुख कमल को देखने हेतु किसी ना किसी बहाने से आ जाती थीं और फिर कुछ समय पश्चात् तृप्त होकर वापस जाती थीं .

समय बीतता रहा और बालक पांच माह का हुआ और अब अन्नप्राशन कि रस्म का समय हुआ धनाभाव होने की वजह से खुदीराम जी ने निर्णय लिया कि अन्नप्राशन के समय शास्त्रोक्त विधि से सम्पूर्ण कृत्य निर्वहन करके श्री रघुवीर जी के प्रसाद से संस्कार पूर्ण करके दो या चार निकटस्थ आत्मीय जनों को भोज आदि करवा देंगे किन्तु गाँव के ब्राह्मणों ने कहा कि अन्नप्राशन के दिन सभी द्विजों के भोजन का आयोजन किया जाये यह बड़े धर्मसंकट की घड़ी थी इतना धन और व्यवस्था कोई हंसी-खेल थोड़ी था, यह बात जब गाँव के जमीदार धर्मदास लाहा को पता चली तो उन्होंने सारा कार्यभार स्वयं वहन कर लिया और सभी को भोजन करवाकर समस्त कार्य सम्पन्न करवाया .

गदाधर ज्यों-ज्यों बड़ा होने लगा अपनी बाल-सुलभ लीलाओं और चंचलता से सबका प्रिय होने लगा जबकि चंद्रा देवी अब अपने पुत्र कि कल्याण कामना से और भी अधिक धार्मिक क्रियाओं और मान-मनौतियों में संलग्न रहने लगीं .

एक दिन कि घटना है जबकि गदाधर सात या आठ महीने का होगा तब प्रातः काल चंद्रा देवी पुत्र को दूध पिलाकर सुला दिया और घर-गृहस्थी की दिनचर्या में संलग्न हुयीं और थोड़ी देर उपरांत जब वापस लौट कर देखती हैं तो अचरज कि सीमा नहीं थी, जिस बिस्तर पर गदाधर को सुला गयी थीं वहां पर गदाधर की जगह कोई अन्य विशालकाय देव पुरुष लेटा हुआ है और यह देख चंद्रा देवी बहुत डर गयीं और भागी-भागी पति के पास पहुंची और उन्हें सारा वृत्तांत कह सुनाया, यह सुनकर जब खुदीराम जी पत्नी के साथ वहां पहुंचे तो देखते हैं कि गदाधर ज्यों का त्यों बिस्तर पर सोया पड़ा है .

खुदीराम जी ने पत्नी को बहुत समझाया लेकिन उनका डर शांत नहीं हुआ तब खुदीराम जी ने कहा कि तुम किसी पंडित को बुलाकर शांति कर्म करवाने की सलाह दी जिससे इस तरह की घटनाएँ ना हों .

इसके बाद शांति कर्म करवाकर भी पुत्र मंगल की कामना से चंद्रा देवी ने ज्ञात सभी देवी-देवताओं के समक्ष पुत्र मंगल की कामना से ढेरों मान मनव्वल कीं.

समय अपनी गति से चलता रहा और १८३९ में चंद्रा देवी ने एक पुत्री को जन्म दिया जिसका नाम सर्व मंगला रखा गया इसके अतिरिक्त कोई अन्य उल्लेखनीय वृत्तांत इस काल में घटित नहीं हुआ .

जब गदाधर कि उम्र प्रायः ५ या ६ साल के आस-पास हो गयी तब उसकी अलौकिक बुद्धि और विषय ग्रहण क्षमता के प्रमाण परिलक्षित होने लगे बालक जो भी सुनता वह तुरंत ही कंठस्थ कर लेता था और पूछने पर यथावत कह सुनाता था साथ ही बाल सुलभ चंचलता एवं उपद्रव के गुण भी गदाधर में सामान्य बालकों की अपेक्षा कुछ अधिक ही परिलक्षित होते थे .

साथ ही खुदीराम जी ने गदाधर को अब अक्षर ज्ञान और गिनती आदि से परिचय करवाना आरम्भ कर दिया था किन्तु गदाधर को गिनती एवं पहाड़ों में रूचि ना के बराबर ही थी, खुदीराम जी यह सोचकर उसे पहाड़े रटाना बंद कर देते थे कि आगे चलकर सीख लेगा .

जब गदाधर के उपद्रव बहुत अधिक बढ़ने लगे तब खुदीराम जी ने उसे पाठशाळा में भर्ती करवाने का निर्णय लिया, गदाधर को भी यह बहुत रुचिकर लगता था क्योंकि घर से निकलकर अब उसे अनेक मित्र मिल गए थे जिनके साथ खेलने का अवसर मिल रहा था .

गदाधर जिस पाठ शाला में पढने जाता था वह धर्मदास लाहा बाबु के घर के सामने ही थी और उसका समस्त व्यय लाहा बाबु ही वहन करते थे पाठ शाला दिन में दो बार संचालित होती थी एक बार सुबह और दूसरी बार दिन के तीसरे प्रहर में .

गदाधर के उपद्रवों और शैतानियों का आनंद सभी लेते थे और उसके उपद्रवों पर खुदीराम जी उसे बहुत प्रेमपूर्वक समझाते थे किन्तु गदाधर के अन्दर इस उम्र में ही जिस तार्किकता का विकास हो रहा था और वह किसी बात की तह तक के सवाल पूछता था यह बात कई बार खुदीराम जी को परेशान करती थी क्योंकि उसके प्रश्नों के उत्तर यदि उसे संतोषजनक नहीं मिलते थे तब वह मनमाना आचरण करता था और खुदीराम जी प्रायः सोच में रहते थे कि तार्किकता वैसे तो अच्छी चीज है लेकिन सामान्य जीवन में बहुत बार बातें तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं तब भी उनका पालन समाज और देश-काल के अनुसार व्यक्ति को करना पड़ता है .

प्रायः गदाधर पाठशाला से गायब रहकर किसी भजन या नाटक आयोजन में चला जाता था किन्तु यदि उससे कारण पूछा जाता था तो वह कभी असत्य नहीं बोलता था और सारी बात यथावत बता देता था .

तार्किकता और बातों कि तह तक जाने के सन्दर्भ में एक घटना उल्लेखनीय है जिसका विवरण दिया जा रहा है:

गदाधर के घर के नजदीक ही हाल्दारपुकुर नाम का एक वृहद तालाब था जिसमें गाँव के सभी नर-नारी स्नान किया करते थे इसमें दो घाट बने हुए थे, जिसमे से एक में पुरुष नहाते थे और दुसरे में स्त्रियों के नहाने की व्यवस्था थी किन्तु छोटे बालक किसी भी घाट पर नहाने लगते थे और इसी क्रम में गदाधर अपने मित्रों के साथ एक दिन स्त्रियों के घाट पर स्नान कर रहा था और सभी एक-दुसरे पर पानी उछाल रहे थे और उनकी इन हरकतों से स्त्रियों को असुविधा महसूस हो रही थी और इसी वजह से किसी स्त्री ने क्रोध में आकर कहा “क्यों रे छोकरों तुम्हे पुरुषों के घाट पर नहाना चाहिए था, तुम लोग यहाँ स्त्रियों के घाट पर क्यों उपद्रव मचा रहे हो ?

क्या तुम्हे ज्ञात नहीं कि स्त्रियों को निर्वस्त्र नहीं देखना चाहिए” ?

इस पर गदाधर ने तपाक से पूछा “ क्यों नहीं देखना चाहिए स्त्रियों को विवस्त्र “?

अब उस स्त्री के पास इस प्रश्न का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं था और अपने निरुत्तर होने कि वजह से उसका क्रोध भी और अधिक बढ़ गया इस दशा में गदाधर ने अंदाजा लगाया कि अब निश्चय ही ये स्त्रियाँ घर जाकर शिकायत करेंगी और जब अपने मित्रों को यह बताया तो वे सब डर के मारे भाग खड़े हुए किन्तु गदाधर ने कुछ और ही विचार कर तीन दिवस तक लगातार स्त्रियों के घाट पर जाता और एक पेड़ की ओट से सभी स्त्रियों को नहाते हुए देखा करता और फिर अगले दिन उसी महिला से जो प्रथम गदाधर पर क्रुद्ध हुयी थी इस प्रकार कहा :

“काकी मैंने परसों चार स्त्रियों को नहाते हुए देखा और फिर कल भी स्त्रियों को नहाते हुए देखा एवं आज पुनः कई स्त्रियों को नहाते हुए देखा किन्तु मुझे कुछ भी ना हुआ, स्त्रियों को कुछ हुआ होगा क्या”?



यह सुनकर वह स्त्री गदाधर को बांह पकड़कर चंद्रा देवी के पास ले गयी और हँसते हुए सारा वृत्तांत कह सुनाया और यह सुनकर चंद्रा देवी ने मुस्कुराते हुए अति मधुर वचनों से गदाधर को समझाया “ ऐसा करने से तुझे कुछ भी ना होगा किन्तु स्त्रियों का मत है कि यदि स्नान करते हुए उन्हें कोई पुरुष देखता है तो इसे स्त्रियों का अपमान समझा जाता है – उन सबको तो तु मेरी ही तरह अपनी माँ और काकी कहता है तब क्या उनका अपमान मेरा अपमान नहीं हुआ और मेरा गदा ऐसा काम कैसे कर सकता है जिससे अन्य स्त्रियों अथवा मेरा अपमान हो”?




क्रमशः ..............................



माता महाकाली शरणम्

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