स्वामी रामकृष्ण परमहंस परिचय एवं जीवन वृत्त महागाथा - 8
उपनयन संस्कार:
गदाधर का अब नौवां वर्ष समाप्त होने को आया था यह सोच अग्रज रामकुमार ने उसका उपनयन संस्कार करने का सुनिश्चित किया और रामकुमार के इस विचार से सभी को बहुत प्रसन्नता हुयी किन्तु सबसे अधिक प्रसन्नता धनी को हो रही थी क्योंकि इस संस्कार में गदाधर उससे प्रथम भिक्षा ग्रहण करने वाला था ( पूर्व समय में ही एक समय धनी ने गदाधर से विनती की थी कि उपनयन संस्कार में वह उससे भिक्षा ग्रहण करे) अस्तु इसी विश्वास के कारण बड़े प्रयत्न से और मेहनत से जोड़े गए थोड़े से पैसों के साथ उस दिन का इंतजार करने लगी जबकि गदाधर को वह प्रथम भिक्षा देगी .
इस सम्बन्ध में गदाधर ने रामकुमार जी को बता दिया लेकिन कुल में पूर्व में कभी ऐसा नहीं हुआ था और दुसरे धनी नीची जात की थी इसलिए सामाजिक समस्या भी थी. इसी उहापोह में उपनयन संस्कार का समय नजदीक आ गया किन्तु गदाधर की जिद की वजह से लग रहा था कि संस्कार को कहीं स्थगित ना कर देना पड़े.
उसी समय जब इस बात का पता धर्मदास लाहा जी को पता चली तो उन्होंने रामकुमार को बुलाकर इस सम्बन्ध में बातचीत की और कहा “ तुम्हारे कुल में पूर्व में ऐसा कुछ नहीं हुआ यह बात तो ठीक है लेकिन किन्ही-किन्ही कुलीन ब्राह्मण परिवारों में पूर्व में भी ऐसी चीजें हो चुकी हैं”
धर्मदास जी कि बात सुनकर रामकुमार को संतुष्टि हुयी और अंततः संस्कार संपन्न हुआ और धनी को गदाधर की भिक्षा माता होने का गौरव प्राप्त हुआ .
महाशिवरात्रि:
उपनयन संस्कार संपन्न हो जाने के उपरांत गदाधर को संध्या एवं देवपूजन का अधिकार प्राप्त हुआ अस्तु अब वह अपना अधिकाधिक समय पूजन और ध्यानादि में लगाने लगा, स्वपिता के समान उसे भी देव-दर्शन हों और दिव्य स्वप्नादि दिखें इस हेतु उसने मन लगाकर देवताओं की भक्ति और सेवा पुरे मनोयोग से आरंभ कर दी.
उसी वर्ष महाशिवरात्रि के दिन गदाधर ने व्रत रखा था और पूर्ण मनोयोग से महादेव की पूजा-अर्चना पूर्ण की थी, उसके साथ उसके तमाम सखा और अन्य बालकों ने भी उपवास किया था और सबने निर्धारित किया था कि रात्रि में सीतानाथ पाइन के घर में आयोजित होने वाले शिवमहिमा के नाटक को देखकर जागरण किया जायेगा.
पूजा इत्यादि संपन्न करके गदाधर बैठा ही था कि उसके साथियों ने आकर उससे कहा “ गदाधर ! जिस लड़के द्वारा शिवजी का अभिनय किया जाना था रात्रि जागरण के नाटक में वह लड़का अचानक ही अस्वस्थ हो गया है अतः आज रात्रि में शिव जी का खेल तुझे ही करना पड़ेगा.
गदाधर ने उत्तर दिया “मेरी पूजा में विघ्न पड़ जायेगा इसलिए मैं इस खेल में भाग नहीं ले सकता”
सभी साथी उस पर बार-बार दबाव बनाने लगे एवं विभिन्न प्रकार से उसे मनाने लगे और कहने लगे कि “जब तू शिवजी के वेश में आएगा और उनके नाम का अभिनय करेगा तो तेरे विचारों में और मष्तिष्क में शिव व्याप्त हो जायेंगे और तु शिवमय हो जायेगा, यह भला किसी पूजा से कम है क्या “?
यदि तूने आज अभिनय नहीं किया तो शिवमहिमा के खेल का क्रम टूट जायेगा और फिर सोच सबको कितनी निराशा होगी इस बात से”
उन सब लोगों के बहुविधि आग्रह और तर्कों के सामने गदाधर राजी हो गया . और अंततोगत्वा रात्रि का वह समय भी आ गया जब गदाधर जटा-जूट बांधकर और पुरे शरीर पर भस्म रमाये हुए महादेव का वेश धारण करके सभा में आया.
उसे देखकर कोई भी व्यक्ति यह कह ही नहीं सकता था कि यह स्वयं महादेव नहीं बल्कि कोई अन्य बालक उनके वेश में है.
मनोहारी वेश देखकर ऐसा लगता है मानो शिव स्वयं ही आज सभा में उतर आये हैं, अभी खेल का मंचन आरंभ भी नहीं हो सका था कि गदाधर उस वेश में इतना तन्मय हो गया कि उसे भाव समाधि लग गयी और नाटक धरा का धरा रह गया .
लोगों का सारा का सारा ध्यान गदाधर पर ही लग गया और उसे जल्दी से उठाकर ले जाया गया और होश में लाने की कोशिश आरंभ की जाने लगी लेकिन बहुत प्रयासों के बाद ही उसे होश में लाया जा सका .
उस दिन के बाद तो यह नियमित ही होने लगा और जब भी वह किसी देव या देवी स्तुति-ध्यान करता तो उसे भाव समाधि लग जाती, पहले-पहल तो सभी इस बात को लेकर बहुत चिंतिंत रहते थे कि इस तरह की घटनाओं से गदाधर को स्वास्थ्य संबंधी समस्या ना होने लगे किंतु शनैः शनैः यह एक सामान्य क्रम बन गया और लोग भी आश्वस्त हो गए कि शारीरिक और स्वास्थ्य संबंधी हानि नहीं हो रही है
क्रमशः .........
माता महाकाली शरणम्
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